लिंक रोड से जैसे ही आनासागर की चौपाटी की ओर बढ़ते हैं तो नजारा मुम्बई की मरीन ड्राइव से कम नजर नहीं आता। अजमेर विकास प्राधिकरण ने स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत झील के विकास पर करोड़ों रुपए खर्च किए हैं। अफसोस इसी बात का है कि झील को सुन्दरता प्रदान करते-करते यहां आने वाले पर्यटकों की सुरक्षा को नजरअंदाज कर दिया गया। करीब आठ किलोमीटर की परिधि में फैली इस झील पर सुरक्षा के मद्देनजर एक भी सुरक्षा गार्ड, होम गार्ड या पुलिस के जवान की तैनाती नहीं है। झील के किनारों पर बनाई गई दीवार और लगाई गई रेलिंग इतनी ऊंची नहीं है कि उस पर कोई चढ़ ना सके। पूरे क्षेत्र में झील पर निगरानी के लिए एक भी सीसीटीवी कैमरा नहीं लगा हुआ। आखिर पर्यटकों की सुरक्षा किस के भरोसे चल रही है ? केवल राम भरोसे।
शहर के प्रशासक कितने संवेदनशील हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। नो कंस्ट्रक्शन जोन में इमारतें खड़ी हो गईं, पर किसी अफसर के सिर पर जूं तक नहीं रेंगी। सब आंख मूंदकर समय बिता रहे हैं। पुरानी चौपाटी पर लोहे के हैंगिंग ब्रिज के गलकर टूट कर गिरने को छह महीने हो गए। केवल रस्सी बांध कर हादसे होने का इंतजार किया जा रहा है। उसे ठीक कराने की जहमत किसी ने नहीं उठाई। बर्ड पार्क के पास झील किनारे जलीय जीवों की जानकारी देने के लिए लगाए गए बोर्ड कई महीनों से बदरंग हो रहे है। इन बोर्डों पर भद्दे वाक्य लिखे हुए हैं, लेकिन इन बोर्डों को बदलने का समय ना तो नगर निगम के पास है और ना ही अजमेर विकास प्राधिकरण को कोई लेना-देना है। नगर निगम तो झील को कमाऊ पूत की तरह इस्तेमाल कर रहा है। बोटिंग कराई जा रही है। अब क्रूज चलाने की तैयारी है। मत्स्य विभाग मछलियां पकड़ने का ठेका देकर जेब भर रहा है। मेरी प्रशासन और जनप्रतिनिधियों से फिर गुजारिश है कि मेरे हालात पर तरस खाइए। क्यों मेरे साथ अंग्रेजी हुक्मरानों से भी बदतर व्यवहार किया जा रहा है ?
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