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गंगा सप्तमी : स्नान ही नहीं गंगा मैया के ध्यान मात्र से हो जाता है उद्धार, ऐसे मिलती है छोटे बड़े पापों से मुक्ति

स्नान ही नहीं गंगा मैया के ध्यान मात्र से हो जाता है उद्धार

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भोपाल

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Shyam Kishor

May 10, 2019

Ganga Saptami

गंगा सप्तमी : स्नान ही नहीं गंगा मैया के ध्यान मात्र से हो जाता है उद्धार

गंगा एक नदी नहीं बल्की करोड़ों लोगों को जीवन दायनी आस्था और श्रद्धा का प्रतिक मानी जाती है। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को गंगा सप्तमी का पर्व मानाया जाता है, जो इस साल 2019 में 11 मई दिन शनिवार को मनाई जायेगी। इस दिन गंगा स्नान करने से छोटे बड़े ज्ञात अज्ञात जो भी जाने अंजाने में पाप कर्क हो गये हो उनसे मुक्ति मिल जाती है। जानें गंगा सप्तमी का महत्व।

गंगा सप्तमी एक प्रकार से गंगा मैया के पुनर्जन्म का दिन है, इसलिये इसे कई स्थानों पर गंगा जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। गंगा सप्तमी के दिन गंगा स्नान का बहुत महत्व है। यदि गंगा मैया में स्नान करना संभव न भी हो तो गंगा जल की कुछ बूंदे साधारण जल में मिलाकर उससे स्नान किया जा सकता है। स्नानादि के पश्चात गंगा मैया की प्रतिमा का पूजन कर सकते हैं। भगवान शिव की आराधना भी इस दिन शुभ फलदायी मानी जाती है। इसके अलावा गंगा को अपने तप से पृथ्वी पर लाने वाले ऋषि भगीरथ की पूजा भी की जाती है। इस दिन गंगा पूजन के साथ दान-पुण्य करने का भी विधान है। अगर किसी से जाने अंजाने में किसी भी तरह के पाप कर्म हो गये हो तो वे इस मां गंगा से छपा मांगते हुए गंगा जी या गंगाजल मिले जल से स्नान अवश्य करें।

जब नाराज होकर महर्षि जाह्नु पी गये थे गंगा का सारा पानी

ऋषि भगीरथ ने अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिये कड़ा तप कर गंगा मैया को पृथ्वी पर लेकर आये थे, तब भगवान शिव ने अपनी जटाओं में लपेट कर गंगा के अनियंत्रित प्रवाह को नियंत्रित कर लिया था। लेकिन बावजूद उसके भी गंगा मैया के रास्ते में आने वाले बहुत से वन, आश्रम नष्ट हो रहे थे। चलते-चलते वह जाह्नु ऋषि के आश्रम में पंहुच गई, जिससे उनके आश्रम में भारी नुक्सान हो गया। ऋषि जाह्नु इस कारण बहुत ही क्रोधित हो गए एवं गंगा मैया के सारे पानी को पी गये।

और गंगा बन गई जाह्न्वी

ऋषि जाह्नु के द्वारा गंगा का पूरा जल पी लेने से ऋषि भगीरथ को अपना प्रयास विफल दिखाई देने लगा। वह जाह्नु ऋषि को प्रसन्न करने के लिये तप पर बैठ गये। देवताओं ने भी महर्षि से अनुरोध कर गंगा के पृथ्वी पर अवतरित होने के महत्व के बारे में बताया। तब जाकर ऋषि जाह्नु का क्रोध शांत हुआ और उन्होंने अपने कान से गंगा मैया को मुक्त कर दिया, तभी से गंगा मैया को जाहन्वी भी कहा जाने लगा। जिस दिन ऋषि जाह्नु ने गंगा को मुक्त किया वह दिन था उस दिन वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि थी। इसलिये इसे गंगा सप्तमी और जाह्नु सप्तमी भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन गंगा में स्ना करना चाहिए अगर संभव न हो तो घर में ही स्नान करते हुए गंगा मैया का ध्यान करने से भी गंगा स्नान का फल मिल जाता है।

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