
गीता जयंती 2019 : संपूर्ण पूजा विधि एवं महत्व
साल 2019 में गीता जयंती का पर्व 8 दिसंबर दिन रविवार ‘श्रीमद्भगवत गीता’ के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। गीता मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि को ही भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का दिव्य दिया था एवं अपने विराट स्वरूप के दर्शन कराएं थे। तभी से प्रतिवर्ष मार्गशिर्ष महीने के शुक्ल पक्ष की एकदशी तिथि को जयंती पर्व मनाया जाने लगा। जानें गीता जयंती पर पूजा विधि विधान एवं महत्व।
भगवत गीता के पाठ से मिलता है मोक्ष
भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता के ज्ञान के माध्यम से कर्म का महत्व जन जन में स्थापित किया। मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को गीता जयंती के साथ मोक्षदा एकादशी भी मनाई जाती है। कहा जाता हैं कि इस दिन मोक्षदा एकादशी का व्रत रखकर इसका पाठ करने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
मनुष्य मात्र के लिए अति बहुमूल्य है श्रीमद्भगवत गीता
मनुष्य जाति के इतिहास में सबसे महान दिन के रूप में अंकित गीता जयंती यानी की श्रीमद्भगवत गीता का जन्म भगवान श्रीकृष्ण के श्रीमुख से अब से करीब 5153 साल पहले कुरुक्षेत्र के युद्धक्षेत्र में हुआ था, वही गीता आज भी उसकी शरण में आने वाली मानवता के मार्ग को पूर्णता प्रदान करके श्रेष्ठ मार्ग की ओर चलाती है। इस परम पवित्र ग्रंथ में छोटे-छोटे अठारह अध्यायों में संचित ज्ञान मनुष्य मात्र के लिए अति बहुमूल्य है। जो कोई भी इसका अध्ययन करता है उसके जीवन में आमुलचूल परिवर्तन होने लगता है, पग पग पर उसे प्रकाश रूप मार्गदर्शन प्राप्त होता है।
माँ त्रिपुर भैरवी जंयती 2019
गीता जयन्ती पूजा विधि
गीता जयन्ती के दिन स्नान करने के बाद पूजा स्थल में पीले रंग के वस्त्र के आसन पर श्रीमदभगवद गीता ग्रंथ को स्थापित करें, स्थापित करने के बाद हल्दी, कुमकुम, अक्षत, धुप दीप, सुगन्धित ताजे पुष्पों से विधिवत पूजन करें, भगवान श्रीकृष्ण के निमित्त नैवेद्य का भोग भी लगायें। विधि विधान से पूजन करने के बाद शांत चित्त होकर श्रीमद्भगवत गीता का पाठ करें। पाठ पूर्ण होने के बाद यथा शक्ति निर्धनों को दान करने से समस्त पापों से मुक्ति मिलती हैं, मनवांछित शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
गीता जयंती पर्व का महत्व
श्रीमद्भगवतगीता आत्मा एवं परमात्मा के स्वरूप को व्यक्त करती है, श्रीकृष्ण भगवान के उपदेश रूपी विचारों से मनुष्य को उचित बोध कि प्राप्ति होती है यह आत्म तत्व का निर्धारण करता है उसकी प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है, एवं इस दिव्य ज्ञान की प्राप्ति से अनेक विकारों से मुक्त हुआ जा सकता है। आज के इस युग में जब मनुष्य भोग विलास, भौतिक सुखों, काम वासनाओं में जकडा़ हुआ है और एक दूसरे का अनिष्ट करने में लगा है, ऐसे में श्रीमद्भगवत गीता का स्वाध्याय करके भय, राग, द्वेष एवं क्रोध से हमेशा के लिए मुक्त हो सकता है।
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Published on:
07 Dec 2019 10:03 am
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