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Hariyali teej: अखंड सौभाग्य और संतानप्राप्ति का व्रत हरियाली तीज, जानें शुभ मुहूर्त और व्रत विधि

अखंड सौभाग्य और संतानप्राप्ति का व्रत हरियाली तीज, जानें शुभ मुहूर्त और व्रत विधि

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भोपाल

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Tanvi Sharma

Jul 31, 2019

HARIYALI TEEJ 2019

हरियाली तीज ( Hariyali teej ) सुहागिन महिलाओं का व्रत होता है। इस दिन वे अपने सुहाग की रक्षा, पति की लंबी आयु और संतान प्राप्ति की कामना करती हैं। सावन के पवित्र महीने में हरियाली तीज आती है और इसमें माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा की जाती है। इस साल हरियाली तीज 3 अगस्त, शनिवार के दिन पड़ रही है। हर साल सावन के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरियाली तीज का व्रत महिलाओं द्वारा रखा जाता है।

हरियाली तीज का सुहागिन महिलाओं में खासा उत्साह होता है। तीज आने के दो-तीन दिन पहले से ही महिलाएं व्रत की तैयारियों में जुट जाती है। खासतौर पर सौभाग्य और श्रृंगार को समर्पित इस पर्व पर महिलाएं और बच्चियां हाथ-पैरों में मेहंदी और आल्ता या महावर लगाती हैं। आइए, जानते हैं हरियाली तीज पूजा मुहूर्त, व्रत विधि और रिवाजों के बारे में...

पूजा मुहूर्त

इस बार हरियाली तीज पूजा का शुभ मुहूर्त दोपहर 3 बजकर 31 मिनट से रात 10 बजकर 21 मिनट तक बन रहा है। इस दौरान मां पार्वती और भगवान शिव की पूजा की जाती है। भजन-कीर्तन किया जाता है।

हरियाली तीज व्रत विधि

हरियाली तीज के दिन विवाहित स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु के लिए व्रत रखती हैं। इस दिन स्त्रियों के मायके से श्रृंगार का सामान तथा मिठाइयां ससुराल में भेजी जाती है। हरियाली तीज के दिन महिलाएं प्रातः गृह कार्य व स्नान आदि के बाद सोलह श्रृंगार कर निर्जला व्रत रखती हैं। इसके बाद विभिन्न प्रकार की सामग्रियों द्वारा देवी पार्वती तथा भगवान शिव की पूजा होती है।

पूजा के अंत में तीज की कथा सुनी जाती है। कथा के समापन पर महिलाएं माता पार्वती से पति के लंबी उम्र की कामना करती है। इसके बाद घर में उत्सव मनाया जाता है तथा विभिन्न प्रकार के लोक नृत्य किए जाते है। इस दिन झूला -झूलने का भी रिवाज है।

हरियाली तीज व्रत कथा

हरियाली तीज से जुड़ी एक पौराणिक कथा के अनुसार माता पार्वती ने भगावन शिव को पति के रुप में पाने के लिए 107 बार जन्म लिया, लेकिन 108 वीं बार पर्वतराज हिमालय के घर जन्म लेने के बाद ही यह मनोकामना पूर्ण हुई। भोलेनाथ ने बताया कि इसके लिए पार्वती जी ने कठोर तप किया। इस क्रम में भाद्रपद तृतीय शुक्ल पक्ष में रेत से एक शिवलिंग का निर्माण कर आराधना की, इसके बाद उनकी मनोकामना पूर्ण हुई। बाद में पर्वतराज ने भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह करवाया। भोलेनाथ ने कहा कि भाद्रपद शुक्ल तृतीया के व्रत से ही यह संभव हो सका। भगवान शंकर ने कहा कि निष्ठापूर्वक व्रत करने से वे हर स्त्री को मनवांछित फल देते हैं। साथ ही इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करने से अचल सुहाग की प्राप्ति होती|