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Ram Navami 2023: इन ग्रहों ने भगवान राम को भी किया था परेशान, जन्म के समय बने थे यह योग

ग्रहों और नक्षत्रों का मनुष्य के जीवन पर गहरा असर पड़ता है। जब भगवान विष्णु ने त्रेता युग में श्रीराम के रूप में अवतार लिया तो उन्होंने भी इस मर्यादा का पालन किया। इस दौरान पाप ग्रह उन्हें भी परेशान करने से बाज नहीं आए। आइये जानते हैं भगवान श्रीराम की कुंडली (Yoga In Shri Ram Kundali) के बारे में और भगवान राम की जन्म पत्रिका के किन योगों के कारण उन्हें जीवन भर संघर्ष करना पड़ा(Ram Navami 2023)।

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Pravin Pandey

Mar 30, 2023

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भगवान श्रीराम का जन्मः गोस्वामी तुलसीदास रचित श्रीरामचरित मानस के अनुसार भगवान श्रीराम का अवतार चैत्र शुक्ल नवमी के दिन, पुनर्वसु नक्षत्र के चतुर्थ चरण और कर्क लग्न में हुआ था।

इस योग के कारण हुए परेशान

भगवान श्रीराम की जन्म पत्रिका में गुरु और चंद्र लग्न में हैं। पांच ग्रह शनि, मंगल, गुरु, शुक्र और सूर्य अपनी उच्च राशि में स्थित हैं। ज्योतिष के अनुसार गुरु कर्क राशि में उच्च का होता है, और यह लग्न में चंद्रमा के साथ स्थित है। इससे उनकी कुंडली में प्रबल कीर्ति देने वाला गजकेसरी योग बना था, लेकिन शनि चतुर्थ भाव में अपनी उच्च राशि तुला में स्थित होकर लग्न की ओर देख रहा है।


इसके अलावा मंगल अपने सप्तम भाव में उच्च राशि मकर में स्थित होकर लग्न की ओर देख रहा है। इसके कारण दो सौम्य ग्रह गुरु और चंद्र को दो पाप ग्रह मंगल और शनि अपनी उच्च राशि से देख रहे हैं। इसके कारण भगवान राम की कुंडली में प्रबल राजभंग योग बना था, इसके कारण राज्याभिषेक से लेकर पूरे जीवन भर उनके राह में बाधाएं आती रहीं।

इन्होंने किया परेशान

ज्योतिषाचार्यों के अनुसार जिस समय राज्याभिषेक होने जा रहा था, उस समय शनि महादशा में मंगल का अंतर चल रहा था।इस तरह शनि और मंगल ने भगवान श्रीराम को भी परेशान किया, उन्हें जीवन भर संघर्ष के लिए विवश किया।

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इसलिए नहीं मिला सुख

श्रीराम की जन्म पत्रिका के अनुसार वे मंगली थे, उनके सप्तम (पत्नी) भाव में मंगल विराजमान था। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार राहु अगर 3,6,11 भाव में स्थित हो तो वह अरिष्टों का शमन करता है। लेकिन इन ग्रहों के कारण भगवान श्रीराम को दांपत्य, मातृ-पितृ और भौतिक सुख नहीं मिल सके। हालांकि दशम भाव में उच्च राशि में सूर्य के होने से वे सुयोग्य शासक के रूप में प्रतिष्ठित हुए और ऐसा उदाहरण पेश कर सके जिसके रामराज्य की आज भी प्रार्थना की जाती है।

इस युति से मिली प्रतिष्ठा

पंचम (विद्या) और नवम (भाग्य) भाव पर गुरु के प्रभाव के कारण धर्म पालन को उन्होंने जीवन का लक्ष्य बनाया और कभी इस मार्ग से विचलित नहीं हुए। भले ही उन्हें शनि और मंगल के कारण भौतिक सुखों की प्राप्ति नहीं हुई, लेकिन त्याग और संघर्ष के मार्ग पर चलकर उन्होंने अपने मर्यादा पुरुषोत्तम के स्वरूप को सबके सामने रखा ताकि मनुष्य उसका अनुकरण कर सके। कष्ट सहकर भी वे हमेशा सत्य, धर्म और लोककल्याण के मार्ग पर चले, ऐसा संभव हो सका लग्न में गुरु और चंद्र की युति से।

11 हजार वर्ष माना जाता है रामराज्यः धार्मिक ग्रंथों के अनुसार राम राज्य 11 हजार वर्षों तक चला था और उनका जन्म एक करोड़ 25 लाख 58 हजार 98 वर्ष पूर्व चैत्र शुक्ल नवमी तिथि पर हुआ था। ई. सन के अनुसार कुछ विद्वान भगवान श्रीराम का जन्म 26 मार्च को मानते हैं।