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चातुर्मास शुरू : शिव पूजन के लिए ये दिन है अत्यंत विशेष

Chaturmas 2021: विष्णु जी के योग निद्रा में लीन...

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Chaturmas and shiv

Chaturmas 2021 with special shiv puja days

हिंदू पंचांग में आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष एकादशी से कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष एकादशी के बीच का समय चातुर्मास कहलाता है। हिंदू धर्म में इस चातुर्मास का विशेष महत्व है। आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी देवशयनी एकादशी या हरिशयनी एकादशी कहलाती है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु योग निद्रा में लीन हो जाते हैं।

ऐसे में माना जाता है कि विष्णु जी के योग निद्रा में लीन होने से सृष्टि का सारा कार्यभार भगवान शिव संभालते हैं। वहीं इस पूरे चातुर्मास में देवी तुलसी के पूजन का विधान है, क्योंकि यही देवी इस कालावधि में पालन का कार्य करती हैं।

जानकारों के अनुसार इस चातुर्मास में धार्मिक कार्य पूर्ण रूप से वर्जित हो जाते हैं और पूजा-पाठ, व्रत-उपवास आदि का महत्व बढ़ जाता है।

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वहीं ये भी माना जाता है कि इस समय कि गई भगवान शंकर की पूजा उपासना का अत्यधिक महत्व है। साथ ही इस चातुर्मास (चार माह) में पड़ने वाले प्रदोष व्रत व मासिक शिवरात्रि का महत्व और भी बढ़ जाता है।








चतुर्मास 2021 में प्रदोष व्रत व मासिक शिवरात्रि...

















































प्रदोष व्रत : मासिक शिवरात्रि : सावन सोमवार
बुधवार, 21 जुलाई: शुक्रवार, 06 अगस्त: 26 जुलाई
गुरुवार, 05 अगस्त: रविवार, 05 सितंबर: 02 अगस्त
शुक्रवार, 20 अगस्त: सोमवार, 04 अक्टूबर: 09 अगस्त
शनिवार, 04 सितंबर: बुधवार, 03 नवंबर: 16 अगस्त
शनिवार, 18 सितंबर--
सोमवार, 04 अक्टूबर--
रविवार, 17 अक्टूबर--
मंगलवार, 02 नवंबर--

चातुर्मास में ये अवश्य करें...
- इस समय पंचामृत से भगवान शिव का महामृत्युंजय मंत्र से अभिषेक करने के साथ ही रुद्रीपाठ भी करें।

- भगवान शिव की पार्थिव पूजा का विधान भी इस समय के सावन माह में ही माना जाता है।

- भगवान शिव पर गंगाजल, बेलपत्र, धतुरा, दही,दूध,घी, शहद, आदि अर्पित कर उनका अभिषेक करें।

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- माना जाता है कि चातुर्मास में पड़ने वाला सावन माह भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। इस माह में पड़ने वाले सभी सोमवार के व्रतों को करने से कुंवारी कन्याओं को शीघ्र ही वर प्राप्ति और सुहागिनों को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

चातुर्मास विशेष...
मान्यता है कि पूरे चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु जी के योगनिद्रा में लीन होने के कारण समस्त सृष्टि के पालन का भार देवी तुलसी पर और समस्त सृष्टि के रक्षण का भार भगवान शिव शंकर पर होता है। इसीलिए समस्त चातुर्मास में तुलसी की पूजा का भी विधान है और इसकी समाप्ति हरिबोधनी एकादशी यानि देवउत्थानी एकादशी या देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के योगनिद्रा से जागने के बाद तुलसी शालीग्राम (भगवान विष्णु का एक रूप) विवाह करने के साथ की जाती है।