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देवउठनी ग्यारसः संपूर्ण तुलसी विवाह पर्व पूजा विधि

Tulsi Vivah Puja Vidhi : देवउठनी ग्यारसः संपूर्ण तुलसी विवाह पर्व पूजा विधि

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भोपाल

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Shyam Kishor

Nov 06, 2019

देवउठनी ग्यारसः संपूर्ण तुलसी विवाह पर्व पूजा विधि

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इस साल 2019 में देवउठनी ग्यारस कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादश तिथि 8 नवंबर दिन शुक्रवार को हैं। इसी दिन से हिन्दू धर्मावलंबी सारे शुभ मांगलिक कार्य प्रारंभ करते हैं। देव उठनी ग्यारस के दिन देवी तुलसी एवं भगवान श्री विष्णु के शालिग्राम स्वरूप का प्रतिक रूप में विवाह संपन्न कराते हैं। जानें तुलसी विवाह पर्व पूजन की संपूर्ण पूजा विधि।

देव उठनी ग्यारस संपूर्ण पूजा विधि-

सबसे पहले देव उठनी ग्यारस के दिन इस मंत्र का उच्चारण करते हुए देवों को जगायें।
'उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये।
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत्‌ सुप्तं भवेदिदम्‌॥
'उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव।
गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥
'शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।

1- सूर्यास्त के बाद परिवार सहित धुले हुये वस्त्र पहनकर तुलसी विवाह के लिए तैयार हो जाये।
2- सजाये गये तुलसी के पौधा वाला एक पटिये पर घर के आंगन, छत या पूजा घर में बिलकुल बीच में रखें।
3- अब तुलसी वाले के गमले के ऊपर गन्ने का मंडप सजाएं।
4- मंडप बनाने के बाद तुलसी माता पर समस्त सुहाग सामग्री के साथ लाल चुनरी चढ़ाएं।
5- अब तुलसी के बगल में शालिग्राम जी भी स्थापित करें।

6- शालिग्राम जी पर तिल ही चढावें, क्योंकि उन पर चावल नहीं चढ़ाये जाते।
7- तुलसी और शालिग्राम जी पर दूध में मिलाकर गीली हल्दी लगाएं।
8- गन्ने के मंडप पर भी हल्दी का लेप करें और उसकी पूजन करें।
9- तुलसी जी और शालिग्राम जी का पूजन करने के बाद मंगलाष्टक का पाठ अवश्य करें।
10- कुछ लोग देव प्रबोधिनी एकादशी से कुछ वस्तुएं खाना आरंभ करते है, अत: पूजन के लिए बेर, भाजी, आंवला, मूली एवं गाजर जैसी खाने की चीजे एकत्रित कर लें।

11- पूजन पूर्ण होने के पश्चात कपूर से (नमो नमो तुलजा महारानी, नमो नमो हरि की पटरानी ) आरती जरूर करें।
12- आरती के बाद तुलसी नामाष्टक मंत्र को पढ़ते हुए दंडवत प्रणाम करें।
वृन्दा वृन्दावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी।
पुष्पसारा नन्दनीच तुलसी कृष्ण जीवनी।।
एतभामांष्टक चैव स्रोतं नामर्थं संयुक्तम।
य: पठेत तां च सम्पूज् सौऽश्रमेघ फललंमेता।।
13- आरती के बाद तुलसी जी एवं शालिग्राम जी को प्रसाद का भोग लगायें।
14- भोग लगाने के बाद 11 परिक्रमा तुलसी जी की करें।
15- पूजा समापन के बाद जब भोजन करे तो भोजन से पहले पूजा के भोग का प्रसाद ग्रहण करें।

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