इस सुविधा में आप अपने बैंक अकाउंट से मौजूदा बैलेंस से ज्यादा पैसे निकाल सकते हैं। ऐसे में आपने जितने अतिरिक्त पैसे लिए हैं इसे एक निश्चित अवधि के अंदर चुकाना होता है। ये एक तरह का लोन होता है जो बैंक आपको जरूरत पड़ने पर देता है। इस पर ब्याज भी लगता है। जो रोजाना या मंथली बेसिस पर होते हैं। ओवरड्राफ्ट फैसिलिटी में कितना अमाउंट आप निकाल सकते हैं इसकी लिमिट बैंक या NBFCs तय करते हैं।
ओवरड्राफ्ट दो तरह के होते हैं। पहला सिक्योर्ड और दूसरा अनसिक्योर्ड। पहले ओवरड्राफ्ट सुविधा के लिए सिक्योरिटी के तौर पर आप कुछ गिरवी रख सकते हैं, जैसे-एफडी, शेयर्स, घर, सैलरी, इंश्योरेंस पॉलिसी, बॉन्ड्स आदि। ऐसा करने पर ये चीजें बैंक या NBFCs के पास गिरवी रहती हैं। जिसे बाद में चुकाने पर छुड़ाया जा सकता है। वहीं दूसरे विकल्प में आपको सिक्योरिटी के तौर पर कुछ देने की जरूरत नहीं होगी, इसे अनसिक्योर्ड ओवरड्राफ्ट कहते हैं। उदाहरण के तौर पर क्रेडिट कार्ड से विदड्रॉल।
लोन लेने पर उसे चुकाने के लिए एक तय अवधि होती है। अगर इससे पहले लोन चुकाते हैं तो उसके लिए प्रीपेमेंट चार्ज देना होता है। जबकि ओवरड्राफ्ट में ऐसा नहीं है। आप किसी भी समय इसे बिना चार्ज दिए चुका सकते हैं। इसमें एक और अच्छी बात यह है कि इसमें ब्याज भी केवल उतने ही वक्त का देना होता है, जितने वक्त तक ओवरड्राफ्टेड अमाउंट आपके पास रहा। इसलिए ये लोन से सस्ता पड़ता है।