बीआरडी के पूर्व प्राचार्य डाॅ.राजीव मिश्र भी जमानत की आस में आक्सीजन कांड केे मुख्य आरोपियों में से एक बीआरडी मेडिकल काॅलेज के पूर्व प्राचार्य डाॅ.राजीव मिश्र भी जमानत की आस में हैं। हालांकि, उच्च न्यायालय से उनकी भी जमानत याचिका खारिज हो चुकी है। डाॅ.राजीव मिश्र इस समय हृदय सहित कई गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं। आक्सीजन कांड के पूर्व उनका आपरेशन हो चुका था। लेकिन जेल जाने के बाद समुचित इलाज के अभाव में उनकी स्थिति और बिगड़ गई। जेल में ही उनके इलाज की कोशिश की कई लेकिन स्थिति नाजुक होने के बाद बीआरडी मेडिकल काॅलेज रेफर कर दिया गया। लेकिन सुरक्षा व्यवस्था का हवाला देकर उनको फिर जेल लाया गया। करीब एक हफ्ते बाद उनको बीआरडी मेडिकल काॅलेज ले जाया गया लेकिन संबंधित रोग के डाॅक्टर के अभाव में उनको लखनउ भेज दिया गया। लेकिन रेफर होने के काफी बाद उनको इलाज के लिए लखनउ भेजा गया।
क्या है बीआरडी मेडिकल काॅलेज का आक्सीजन कांड 10 अगस्त 2017 का दिन गोरखपुर के चिकित्सीय इतिहास का सबसे काला दिन था। बीआरडी मेडिकल काॅलेज में मरीजों को सप्लाई देने वाले आक्सीजन प्लांट से रात में आक्सीजन खत्म हो गया। वजह यह कि काफी दिनों से बकाया भुगतान नहीं होने की वजह से आक्सीजन सप्लायर पुष्पा सेल्स ने आक्सीजन की सप्लाई बाधित कर दी थी। हालांकि, आक्सीजन सप्लाई रोकने के पूर्व कंपनी ने बीआरडी के जिम्मेदारों से लेकर जिले के जिलाधिकारी, मंडल के कमिश्नर से लेकर शासन के अधिकारियों व मंत्री तक को कई बार रिमांइडर भेज दिया था। लेकिन जबतक मौतों का स्यापा नहीं पसरा तबतक किसी को इस बाबत बात करने की फुर्सत तक नहीं हुई।
आक्सीजन सप्लाई बाधित होने के बाद करीब तीन दर्जन मासूम बच्चों की जान चली गई। करीब डेढ़ दर्जन व्यस्क व्यक्तियों की भी मौत हुई। इसके बाद चारों ओर हाहाकार मच गया। पहले तो सरकार ने इस मामले को दबाने की कोशिश की लेकिन नेशनल-इंटरनेशनल मीडिया की सुर्खियां बनने के बाद मामला तूल पकड़ा। अगले दिन बीआरडी मेडिकल काॅलेज पहुंचे सरकार के सीनियर मंत्री व सरकार की ओर से नामित प्रवक्ता डाॅ.सिद्धार्थनाथ सिंह ने हर साल के आंकडे़ दिखाते हुए अगस्त महीने में मौतों को सामान्य आंकड़ा बताने की कोशिश में लगे रहे। उन्होंने यह कह दिया कि अगस्त में तो मौतें होती ही रहती हैं। उनके बयान पर जब सरकार की किरकिरी शुरू हुई तो आनन-फानन में जांच कमेटी गठित हुई। फिर जांच के बाद डीजीएमई केके गुप्ता ने नौ आरोपियों के खिलाफ हजरतगंज थाने में एफआईआर दर्ज कराई। बाद में यह केस गोरखपुर ट्रांसफर कर दिया गया। इसके बाद कुछ की गिरफ्तारियां हुईं तो कुछ ने कोर्ट में सरेंडर किया। फिर कोर्ट कचहरी का दौर शुरू हुआ। करीब आठ महीने से लोकल कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट तक सभी जमानत की गुहार लगा रहे लेकिन सभी की याचिका खारिज हो गई। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने आक्सीजन सप्लायर मनीष भंडारी को जमानत दे दी।
आक्सीजन सप्लाई बाधित होने के बाद करीब तीन दर्जन मासूम बच्चों की जान चली गई। करीब डेढ़ दर्जन व्यस्क व्यक्तियों की भी मौत हुई। इसके बाद चारों ओर हाहाकार मच गया। पहले तो सरकार ने इस मामले को दबाने की कोशिश की लेकिन नेशनल-इंटरनेशनल मीडिया की सुर्खियां बनने के बाद मामला तूल पकड़ा। अगले दिन बीआरडी मेडिकल काॅलेज पहुंचे सरकार के सीनियर मंत्री व सरकार की ओर से नामित प्रवक्ता डाॅ.सिद्धार्थनाथ सिंह ने हर साल के आंकडे़ दिखाते हुए अगस्त महीने में मौतों को सामान्य आंकड़ा बताने की कोशिश में लगे रहे। उन्होंने यह कह दिया कि अगस्त में तो मौतें होती ही रहती हैं। उनके बयान पर जब सरकार की किरकिरी शुरू हुई तो आनन-फानन में जांच कमेटी गठित हुई। फिर जांच के बाद डीजीएमई केके गुप्ता ने नौ आरोपियों के खिलाफ हजरतगंज थाने में एफआईआर दर्ज कराई। बाद में यह केस गोरखपुर ट्रांसफर कर दिया गया। इसके बाद कुछ की गिरफ्तारियां हुईं तो कुछ ने कोर्ट में सरेंडर किया। फिर कोर्ट कचहरी का दौर शुरू हुआ। करीब आठ महीने से लोकल कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट तक सभी जमानत की गुहार लगा रहे लेकिन सभी की याचिका खारिज हो गई। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने आक्सीजन सप्लायर मनीष भंडारी को जमानत दे दी।
गोरखपुर का आईएमए भी आया आरोपी डाॅक्टर्स के समर्थन में बीआरडी मेडिकल काॅलेज में अगस्त 2017 में आक्सीजन की कमी से हुई मासूमों की मौत के मामले में आरोपी बनाए गए डाॅक्टर्स के समर्थन में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन अब उतर चुका है। छह महीने से अधिक दिनों तक चुप्पी साधा रहा एसोसिएशन अब अपने डाॅक्टर्स के समर्थन में खुलकर बोल रहा। आईएमए ने चेताया है कि जेल में बंद डाॅक्टर्स को बेहतर चिकित्सीय सुविधा तक नहीं मिल रही। अगर कोई अनहोनी उनके साथ होती है तो वे लोग प्रदेश में आंदोलन को बाध्य होंगे। आईएमए के अध्यक्ष डाॅ.जेपी जायसवाल, सचिव डाॅ.आरपी शुक्ल सहित अन्य पदाधिकारियों ने आरोप लगाया कि जब प्रदेश सरकार कह रही कि आक्सीजन की कमी से बच्चों की मौत हुई ही नहीं तो डाॅक्टर्स को क्यों बलि का बकरा बनाया जा रहा। आक्सीजन की सप्लाई अगर रोकी गई तो उसके लिए जिम्मेदार शासन और उनके अधिकारी हैं। सभी के पास रिमाइंडर कंपनी ने भेजी थी लेकिन आरोपी बनाया गया डाॅक्टर्स को। आईएमए ने कहा कि आक्सीजन की समस्या की वजह सरकारी लापरवाही, उदासीनता है। लखनउ से लेकर गोरखपुर तक के प्रशासनिक अधिकारी इसके लिए दाषी हैं। लेकिन सरकार उनको बचाने के लिए डाॅक्टर्स पर केस कराती रही।