
मां शैलपुत्री की आराधना के साथ आज से चैत्र नवरात्रि कि शुरुआत हो गई है। नौ दिन मां दुर्गा के अलग-अलग नवरूपों की भक्त पूजा करते हैं। नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। ऐसे में गोरखपुर के तमाम मां भगवती के मंदिरों में सुबह से ही श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखने को मिल रही है।
चैत्र नवरात्र के अवसर पर प्रमुख देवी मंदिरों गोलघर काली मंदिर,बुढिया माई,तरकुलहा माता मंदिर एंव अन्य को सजाया जा गया है। चुनरी, नारियल आदि पूजन सामग्री की दुकानें सजी हुई हैं। इस वर्ष नवरात्रि पूरे नौ दिनों की है। कोई तिथि न खंडित (क्षय) है और न वृद्धि को प्राप्त है। नवरात्रि का समापन 10 अप्रैल को होगा।
वासंतिक नवरात्र का महत्व
ज्योतिर्विद मनीष मोहन के अनुसार, बसंत ऋतु में होने के कारण चैत्र नवरात्रि को वासंतिक नवरात्र कहा जाता है। इस दौरान हर दिन मां के नौ अलग-अलग रूपों मां शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्रि की पूजा की जाती है। नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना की जाती है। इसके बाद लगातार नौ दिनों तक मां की पूजा व उपवास किया जाता है। नवें दिन ही हवन के बाद कन्या पूजन होता है। नौ दिनों तक विधि-विधान से व्रत करने वाले श्रद्धालु 10वें दिन पारण करते हैं। मान्यताओं के अनुसार, चैत्र नवरात्र के नवनी तिथि को ही भगवान राम का जन्म हुआ था।
आठ को महानिशा पूजा-
ज्योतिर्विद कुमार अमित के अनुसार, महानिशा पूजा बलिदान के लिए आठ अप्रैल का दिन मान्य रहेगा। इस दिन सप्तमी तिथि का मान आठ बजकर 29 मिनट तक पश्चात रात में अष्टमी है। इसी रात में महानिशा पूजा और देवी के निमित्त बलिदानादिक क्रियाएं संपन्न की जाएंगी। बताया कि नौ अप्रैल दिन शनिवार को महाष्टमी का व्रत किया जाएगा। इस दिन अष्टमी तिथि का मान रात्रि 10 बजकर 26 तक रहेगा। इसी तरह पुनर्वसु नक्षत्र भी संपूर्ण दिन और अर्द्धरात्रि के बाद एक बजकर 56 तक है। सूर्योदय की तिथि में अष्टमी होने से और अर्धरात्रि में नवमी का संयोग होने से महाष्टमी व्रत के लिए यह दिन पूर्ण प्रशस्त रहेगा।
कलश स्थापना मुहूर्त
ज्योतिषाचार्य मनीष मोहन के अनुसार, कलश स्थापना दो अप्रैल सुबह पांच बजकर 51 मिनट से सुबह छह बजकर 28 मिनट तक होगी। इसके बाद 10 बजकर तीन मिनट से 12 बजकर 17 मिनट तक मुहूर्त है। अभिजित मुहूर्त दिन में 11 बजकर 36 मिनट से 12 बजकर 36 मिनट तक है। इसके बाद शाम चार बजकर 48 मिनट से छह बजकर 10 मिनट तक मुहूर्त है।
कलश स्थापना पूजन विधि
पंडित कपिलाचार्य के अनुसार, बालू और मिट्टी की बेदी बनाकर उसमें जौ बोएं। फिर उस पर कलश स्थापित करें। कलश पर कपड़ा बांध उसमें जल भरें। कलश में सुपारी, पैसा, हल्दी, चंदन, गंगाजल, पंचरत्न आदि डालें। कलश के ऊपर आम का पल्लव रखें। फिर उस पर कोसा में चावल भरकर रखें और उसमें नारियल का गोला रखें। कलश के सामने गौरी-गणेश की स्थापना करें। साथ ही नवग्रह को भी स्थापित करें। मां की प्रतिमा या चित्र स्थापित कर उसकी विधि-विधान से नौ दिनों तक पूजा-अर्चना करें। व्रती दुर्गा सप्तशती का पाठ भी करें।
Published on:
02 Apr 2022 12:49 pm
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