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पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी पत्नी संग 13 साल बाद रिहा होंगे !

मधुमिता हत्याकांड में उम्रकैद की सजा काट रहेे हैं पूर्व मंत्री व उनकी पत्नी

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जेल का नाम सुनते ही लोगों के पसीने छूट जाते हैं। बड़े से बड़ा अपराधी भी सलाखों के पीछे जाने से डरता है, लेकिन देश में एक ऐसा भी जेल है जहां लोग खुशी से जाना चाहते हैं। इसके लिए वे पैसे तक चुकाने को तैयार है। इस जेल में कोई लग्जरी सुविधाओं के न होने के बावजूद लोग कैदी बनने को तैयार है। तो क्या है इसकी वजह आइए जानते हैं।

गोरखपुर। बाहुबली पूर्व मंत्री अमर मणि त्रिपाठी व उनकी पत्नी मधुमणि की रिहाई के आसार प्रबल होते नजर आ रहे हैं। यूपी से उनके मुकदमों व दंपत्ति के मेडिकल रिपोर्ट उत्तराखंड भेज दिए गए हैं। कवियित्री मधुमिता शुक्ला हत्याकांड में उम्रकैद की सजा काट रहे इस दंपत्ति ने बढ़ती उम्र्र और स्वास्थ्य का हवाला देकर सरकार से रिहाई की गुहार लगाई थी। इनके विधायक पुत्र ने भी रिहाई्र के लिए मर्सी अपील की थी। इस बाबत रिपोर्ट भी यूपी से उत्तराखंड भेज दी गई है। सूत्रों की मानें तो उत्तराखंड से इस दंपत्ति की रिहाई का परवाना निकल सकता है।
लखनऊ में हुई मधुमिता शुक्ला हत्या कांड ने राजनैतिक भूचाल ला दिया था। इस हत्याकांड में तत्कालीन मंत्री अमरमणि त्रिपाठी आरोपी थे। मामला तूल पकड़ा तो इसे सीबीआई के हवाले कर दिया गया। हत्या के इस मामले में साजिश रचने का आरोप सिद्ध पाए जाने पर पूर्व मंत्री अमरमणि और उनकी पत्नी मधुमणि को उत्तराखण्ड की कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई थी। न्यायालय के निर्णय के बाद कुछ दिनों तक यह दंपति तो उत्तराखंड जेल में ही रहा लेकिन बाद में उनको यूपी के गोरखपुर में शिफ्ट कर दिया गया। चार दिसम्बर 2008 को मधुमणि गोरखपुर जेल में आईं। फिर 13 मार्च 2012 को अमरमणि को यहां लाया गया। 13 मार्च 2013 को अमरमणि त्रिपाठी को मेडिकल कालेज में भर्ती कराया गया। जबकि 27 फरवरी 2013 को पहले ही मधुमणि यहां इलाज केे लिए आ चुकी थीं।

उत्तराखंड सरकार लेगी फैसला

पूर्व मंत्री अमर मणि त्रिपाठी व उनकी पत्नी मधुमणि पर उत्तराखंड सरकार ही फैैसला ले सकती है। दंपत्ति ने यूपी सरकार से रिहाई की गुहार लगाई थी। इनके द्वारा बढ़ती उम्र, पारिवारिक जिम्मेदारियां और बीमारी का हवाला दिया गया था। इनके विधायक बेटे अमनमणि ने भी शासन स्तर पर लिखित पैरवी की। इस मामले में यूपी सरकार ने रिपोर्ट भी मंगाई। लेकिन मामला उत्तराखंड का होने के नाते इसे पड़ोसी राज्य को भेज दिया गया। उत्तराखण्ड सरकार ने मामले को संज्ञान में लेते हुए मुकदमों का स्टेटस मांगा था।


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