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बीआरडी मेडिकल कॉलेज में बढ़ेगी ऑक्सीजन की उपलब्धता,नया प्लांट लगाने में जुटा प्रशासन

बीआरडी मेडिकल कॉलेज गोरखपुर में जल्द ही नया आक्सीजन प्लांट लग जाएगा।प्रशासन ने इसके लिए पूरी तैयारी कर ली है। इस प्लांट के लगने से ऑक्सीजन उपलब्धता में बढ़ोत्तरी होगी।

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गोरखपुर बीआरडी मेडिकल कॉलेज में जल्द ही 20 हजार लीटर ऑक्‍सीजन की क्षमता वाले नए प्लांट की स्‍थापना की जाएगी। प्रशासन ने इसके लिए पूरी तैयारी कर ली है। मेडिकल कालेज परिसर में तीन स्थानों पर 50 हजार लीटर की क्षमता का प्लांट लगा है।


किसी भी परिस्थिति में आम़जन को आक्सीजन की कमी का सामना न करना पड़े इसके लिए बीआरडी मेडिकल कॉलेज में नया आक्सीजन प्लांट लगाया जाएगा।प्रधानाचार्य डा. गणेश कुमार ने कहा कि मेडिकल कालेज को आक्सीजन के मामले में आत्मनिर्भर बनाया जा रहा है। 50 हजार लीटर लिक्विड आक्सीजन की क्षमता उपलब्ध होने के बाद 20 हजार लीटर की क्षमता का एक और प्लांट जल्द ही स्थापित किया जायेगा।

मेडिकल कालेज प्रशासन ने नेहरू चिकित्सालय में 20 व 10 हजार लीटर की क्षमता के दो प्लांट स्थापित किये हैं। पांच सौ बेड के बाल रोग संस्थान में 20 हजार लीटर क्षमता का प्लांट स्थापित है। कोरोना संक्रमण काल में बाल रोग संस्थान में ही रोगियों को भर्ती किया जाता था।

एक नजर में ऑक्सीजन प्लांट

हास्पिटल - बेड - क्षमता (एलएमपी)


बेड टीबी हास्पिटल - 100 - 400

जिला अस्पताल - 100 - 960

जिला अस्पताल - 205 - 1000

जिला महिला अस्पताल - 200

सीएचसी चौरीचौरा - 50 - 500

सीएचसी हरनही - 50 - 300

सीएसची सहजनवां - 50 - 333

सीएचसी कैंपियरगंज - 40 - 300

होमियोपैथी मेडिकल कालेज - 200

महायोगी गोरखनाथ यूनिवर्सिटी - 200 - 600

बीआरडी मेडिकल कालेज - 1750 - 1000

सीएचसी चारगावां - 30 - 250

सीएचसी पिपरौली - 30 - 500

सीएचसी बांसगांव - 30 - 166

एम्स - 100 - 400

बीआरडी मेडिकल कालेज -

सीएचसी गोला - 30 - 11

ऐसे बनती है मेडिकल ऑक्सीजन


हवा में मौजूद ऑक्‍सीजन को फिल्‍टर करने के बाद मेडिकल ऑक्‍सीजन तैयार की जाती है। इस प्रोसेस को "क्रायोजेनिक डिस्टिलेशन प्रोसेस" कहा जाता है। इसके बाद कई चरणों में हवा को कंप्रेशन के जरिये मॉलीक्यूलर एडजॉर्बर से ट्रीट कराया जाता हैं, जिससे हवा में मौजूद पानी के कण, कार्बन डाई ऑक्साइड और हाइड्रोकार्बन अलग हो जाते हैं।

इसके बाद कंप्रेस्‍ड हवा डिस्टिलेशन कॉलम में आती है। यहां इसे "प्लेट फिन हीट एक्सचेंजर एंड एक्सपेन्शन टर्बाइन प्रक्रिया" से ठंडा किया जाता हैं। इसके बाद 185 डिग्री सेंटीग्रेट पर इसे गर्म करके डिस्टिल्ड किया जाता है। जानकारी के लिए बता दें कि मरीजों को जो ऑक्सीजन दी जाती है, वह 98 प्रतिशत तक शुद्ध होती है।

इस ऑक्सीजन में कोई अशुद्धि नहीं होती, जिस कारण मरीजों को इसे सांस के रूप में लेने में कोई तकलीफ नहीं होती।


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