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Gorakhpur by-election जब बगावत का झंड़ा बुलंद किया था भाजपा प्रत्याशी उपेंद्र दत्त शुक्ल ने

2005 में कौड़ीराम उपचुनाव में टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर बागी होे गए थे उपेेंद्र दत्त शुक्ल, बाद में लौट आए थे संगठन में

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गोरखपुर। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा खाली की गई गोरखपुर संसदीय सीट पर भाजपा के प्रत्याशी उपेंद्र दत्त शुक्ल काफी अर्से से संगठन से जुड़े रहे हैं। पार्टी में वह अपने बागी तेवरों के लिए भी जाने जाते हैं। कौड़ीराम विधानसभा में सक्रिय रहे उपेंद्र दत्त शुक्ल दो बार टिकट कटने से नाराज होकर बगावत का झंड़ा भी बुलंद कर चुके हैं। बागी होकर चुनाव लड़ खुद तो हारे ही पार्टी को भी हरवा दिया। इसके बाद संगठन में फिर वापसी कर ली और पार्टी की मजबूती के लिए जुटे रहे।
जानकार बताते हैं कि करीब चार दशक से पार्टी से जुड़े रहे वर्तमान क्षेत्रीय अध्यक्ष उपेंद्र दत्त शुक्ल का कार्यक्षेत्र कौड़ीराम विधानसभा रहा है। उनकी मेहनत को देखते हुए 1996 में भाजपा ने अपने सिंबल पर उनको चुनाव लड़ाया था। हालांकि, इस चुनाव में उपेंद्र दत्त शुक्ल को जीत नहीं मिल सकी लेकिन सम्मानजनक वोट बटोरने में कामयाब हुए थे। इसके बाद वह क्षेत्र में बने रहे। उम्मीद थी कि पार्टी उन पर फिर से भरोसा जताएगी। लेकिन 2002 में पार्टी ने उनको टिकट देने की बजाय कई बार विधायक रह चुके स्वर्गीय रविंद्र सिंह की पत्नी गौरी देवी को उम्मीदवार बना दिया। उपेंद्र टिकट कटने के बाद भी पार्टी से जुड़े रहे। यह चुनाव बसपा प्रत्याशी रहे पूर्व मंत्री रामभुआल ने जीती थी। लेकिन तीन साल बाद ही रामभुआल निषाद का चुनाव अवैध घोषित हो गया। यहां उपचुनाव की घोषणा हुई। 2005 में हुए उपचुनाव में उपेंद्र दत्त शुक्ल को पूरी उम्मीद थी कि पार्टी उनको ही प्रत्याशी बनाएगी। लेकिन यह दौर बीजेपी के फायरब्रांड नेता योगी आदित्यनाथ का था। उन्होंने मंदिर के करीबी शीतल पांडेय के लिए सिफारिश की। पार्टी ने शीतल पांडेय को चुनाव लड़ाने का फैसला किया।
सालों से क्षेत्र में बने रहे उपेंद्र दत्त शुक्ल नाराज हो गए। उन्होंने तुरंत बगावत का झंड़ा बुलंद किया। भाजपा और योगी आदित्यनाथ से बगावत करते हुए उपेंद्र दत्त शुक्ल निर्दल ही चुनावी रणक्षेत्र में उतर गए। पूरे दमखम से चुनाव लड़ेे। हम तो डूबेंगे सनम तुमको भी ले डूबेंगे की तर्ज पर परिणाम भी आया। न उपेंद्र दत्त जीते न ही भाजपा।
उपचुनाव के कुछ ही दिनों बाद उन्होंने संगठन में वापसी की। फिर लगातार विभिन्न पदों पर आसीन हुए। 2013 में भाजपा ने उनको क्षेत्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी। 2014 में बीजेपी की प्रचंड जीत के बाद फिर संगठनात्मक चुनाव हुए तो उपेंद्र दत्त शुक्ला को पुनः क्षेत्रीय अध्यक्ष पद के लिए उपयुक्त संगठनकर्ता माना गया।
लेकिन 2017 में फिर भाजपा ने उनको विधानसभा का टिकट नहीं दिया। पार्टी सूत्र बताते हैंे कि सहजनवां से उपेंद्र दत्त शुक्ल टिकट के दावेदारों में शामिल थे लेकिन उनकी जगह शीतल पांडेय को प्रत्याशी बनाया गया। उपेंद्र दत्त शुक्ल संगठन की झंड़ाबरदारी करते रहे।
इस बार जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने संसदीय सीट खाली की तो अन्य दावेदारों के साथ उपेंद्र दत्त शुक्ल का नाम भी उभर कर सामने आया। मंदिर की ओर से योगी कमलनाथ का नाम आया।
काफी मंथन चला लेकिन अंत में पार्टी ने सारे समीकरणों को दरकिनार कर संगठन से जुड़े उपेंद्र दत्त शुक्ल पर भरोसा जताया।


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