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Noida News: पसमांदा मुसलमानों की रगों में हिंदू समाज और भारत का खून दौड़ रहा- मौलाना लियाकत

Noida News: पसमांदा मुसलमानों की रगों में हिंदू समाज और भारत का खून का दौड़ रहा है। देश की आबादी में पसमांदा का प्रतिशत 85 प्रतिशत तक है।

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Noida News: पसमांदा मुसलमानों का मतलब पिछड़े या दबे-कुचले मुस्लिमों से है। जिसकी आबादी देश में 80-85 प्रतिशत हैं। मुस्लिम समाज अशराफ, अजलाफ और अरजाल श्रेणियों में विभक्त है। शेख, सैयद, मुगल और पठान अशराफ कहे जाते हैं।

अशराफ का अर्थ है कुलीन या उच्च, जो अफगान-अरब मूल के तथा उच्च हिन्दुओं से धर्मांतरित मुसलमान कहे जाते हैं। अजलाफ पेशेवर जातियों से धर्मांतरित मुसलमानों का वर्ग है, जो नीच और बदजात कहे जाते हैं।

एक तीसरा वर्ग कुछ स्थानों पर सबसे नीच मुसलमानों का है, कुलीन मुसलमान अपने से निचली जाति वालो से संबंध नहीं रखते। यहां तक कि उनके लिए मस्जिद और सार्वजनिक कब्रिस्तान का उपयोग भी निषिद्ध है।

दलित मुसलमानों के जनाजे का नमाज पढ़ने से भी मौलवी इंकार कर देते हैं। "भारत और पाकिस्तान दोनों ही देशों में जातिवाद मुस्लिम समाज का यथार्थ है।

यह सच है कि इस्लाम में जातिवाद नहीं है। यह बातें मौलाना लियाकत ने एक मसूरी में आयोजित एक जलसे में कही।

उन्होंने कहा मुस्लिम समाज का जातिवाद हिंदू समाज से ज्यादा भयानक है। हिंदू समाज में दलितों के प्रति दृष्टिकोण में परिवर्तन भी आया है और बहुत से प्रगतिशील हिंदुओं का सहयोग भी दलितोत्थान के क्षेत्र में मिल रहा है, परंतु मुसलमानों का दुर्भाग्य यह है कि उनके उत्थान के प्रश्न पर कुलीन मुसलमानों में न तो पहले सोच पैदा हुई और ना ही अब हो रही है।

उन्होंने कहा पसमांदा आंदोलन राष्ट्रवादी सोच पर आधारित पिछड़े और दलित मुस्लिमों का आंदोलन है। पसमांदा की त्रासदी यह कि उन्हीं की उपेक्षा कर उनके नाम पर अशराफ मुस्लिम अपनी राजनीति चमकाते हैं।

पसमांदा आंदोलन तथाकथित सेक्युलर पार्टियों के लिए एक बड़ी चुनौती है। यह न केवल मुस्लिम विमर्श बदल रहा है, बल्कि एक बड़े मुस्लिम वर्ग की सोच और मतदान व्यवहार में बदलाव लाकर भारतीय राजनीति में गंभीर परिवर्तन लाने की प्रबल संभावना भी रखता है।


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पीएम मोदी ने की पसमांदा समाज के हित की बात
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने मुस्लिम समाज में शोषित वंचित पिछड़े दलित जिसे पसमांदा समाज कहते है के समाजिक और राजनीतिक पिछड़ेपन को लेकर अपनी चिंता प्रकट की।

उन्हें समाज के मुख्यधारा में लाने के लिए कार्यकर्ताओ से आह्वान किया की पसमांदा समाज को 'स्नेह यात्राओं के माध्यम से जोड़ा जाये और उनकी समस्या को समझा जाये।

प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी देश के पहले प्रधानमन्त्री हैं जिन्होंने पसमांदा विमर्श की शुरुआत की है क्योंकि गरीब कल्याण का लक्ष्य तब तक पूरा नहीं होगा जब तक देश के सभी गरीबों का कल्याण ना हो। पंक्ति में खड़े अंतिम व्यक्ति तक कल्याण का मार्ग तुष्टीकरण नहीं बल्कि तृप्तिकरण के रास्ते पर आगे बढ़ेगा।