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एनआरसीः हिंदीभाषियों के नाम न आने से खफा 32 संगठन आए एक मंच पर, मिलकर लड़ेंगे लड़ाई

जिन लोगों से भारतीयता शुरु होती है, उन लोगों के नाम एनआरसी में न आना कतई स्वीकार्य नहीं। हिंदीभाषी लोग पांच हजार सालों से भारतीयता और भारतीय संस्कृति के प्रतीक रहे हैं

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राजीव कुमार

गुवाहाटी। असम की राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) के अंतिम प्रारुप में राज्य के अधिकांश हिंदीभाषियों के नाम नहीं आने से हिंदीभाषियों के संगठन एक मंच पर आ गए हैं। इसमें अन्य पार्टियों के साथ भाजपा के विधायक व नेता भी साथ दे रहे हैं।

हिंदीभाषियों का राज्य के विकास में बहुमूल्य योगदान

भाजपा के ढेकियाजुली के विधायक अशोक सिंघल ने कहा कि जिन लोगों से भारतीयता शुरु होती है, उन लोगों के नाम एनआरसी में न आना कतई स्वीकार्य नहीं। हिंदीभाषी लोग पांच हजार सालों से भारतीयता और भारतीय संस्कृति के प्रतीक रहे हैं। इन लोगों के नाम एनआरसी से छूट जाना चिंतनीय विषय है। सिंघल ने आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में चल रही एनआरसी के अंतिम प्रारुप में विदेशियों के नाम शामिल हो गए लेकिन भारतीयों के नाम छूट गए। उन्होंने कहा कि असम में वर्षों से रह रहे हिंदीभाषियों का राज्य के विकास में बहुमूल्य योगदान रहा है। हिंदीभाषी समाज के लोग तन,मन और धन से असम आंदोलन से लेकर आज तक राज्य के विकास में योगदान देते रहे हैं। उन्होंने एनआरसी के अंतिम प्रारुप में नाम आने से वंचित लोगों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने और नौ अगस्त को दिल्ली में केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात करने की बात कही।

हिंदीभाषी संगठनों को एकजुट होने का आह्वान


सिंघल ने सभी हिंदीभाषी संगठनों को एकजुट होने का आह्वान किया। यदि ये एकजुट हो जाएं तो किसी भी सरकार को हिलाने की ताकत रखते हैं। इस लड़ाई को लड़ने के लिए 32 हिंदीभाषी संगठन एक मंच पर आए हैं। दो समन्वय समितियां गठित की गई हैं। एक समिति एनआरसी में नाम आने से छूट गए लोगों से संपर्क करेगी तो दूसरी समिति उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और अन्य राज्यों से मिलकर इस विषय पर चर्चा करेंगी ताकि वहां सत्यापन के लिए भेजे गए कागजात जल्द सत्यापन कर भेजे जाएं।