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एक मोटिवेशनल स्पीकर ऐसा भी, पढ़ा-लिखा नहीं लेकिन खड़ी कर ली टीचर्स की टीम

प्रदेश के युवाओं में बच्चों को पढ़ाने का जुनून, ‘वॉइस ऑफ स्लम’ में नि:शुल्क पढ़ रहे 370 बच्चे

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एक मोटिवेशनल स्पीकर ऐसा भी, पढ़ा-लिखा नहीं लेकिन खड़ी कर ली टीचर्स की टीम

एक मोटिवेशनल स्पीकर ऐसा भी, पढ़ा-लिखा नहीं लेकिन खड़ी कर ली टीचर्स की टीम

ग्वालियर.

कौन कहता है आसमां में सुराख हो नहीं सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों... ऐसा ही कुछ कर दिखाया है प्रदेश के युवाओं ने। ग्वालियर के देव प्रताप राजपूत खुद पढ़े-लिखे नहीं हैं, लेकिन उन्होंने 30 शिक्षकों की एक टीम तैयार की है, जो 370 स्लम बच्चों को नि:शुल्क पढ़ा रही है। यह प्लान उन्होंने खुद वेटर के रूप में काम करने के दौरान लिया, तब लोगों ने उनकी बातों पर हंसा, लेकिन आज वही उन्हें मोटिवेशनल स्पीकर के रूप में वही लोग सुनने शैक्षणिक संस्थानों में जाते हैं।

कबाड़ बीना, बर्तन धोए, वेटर भी बना, लेकिन आज सभी के लिए आइडल

देव ने बताया कि मैं प्रदेश की एक छोटी सी जगह डबरा से बिलांग करता हूं। परिवार में सभी दबंग हैं। इसलिए मुझे लगा कहीं मैं रास्ता न भटक जाऊं, मैंने 11 साल की उम्र में डबरा छोड़ दिया। गुल्लक तोडकऱ 130 रुपए निकाले और ग्वालियर आ गया। कुछ दिन में पैसे खत्म हो गए, तब ट्रेन में कबाड़ बीनने लगा, साथ ही ड्रग्स का शौकीन हो गया। पुलिस ने 15 दिन के लिए जेल में डाल दिया। छूटा तो ग्वालियर में ही होटल में बर्तन साफ करने का काम मिल गया। फिर यहीं वेटर बना। गोवा गया वहां भी अच्छी सेलरी पर वेटर का काम किया। फिर दिल्ली आ गया और स्टार्टअप शुरू किया। काम फेल हो गया। तब मैं सेल्स मैन बना। डेढ़ साल में ही मार्केटिंग हेड बन गया। सेलरी बहुत अच्छी हो गई। मां से मिला, लेकिन कुछ दिन बाद एक एक्सीडेंट में वो भी चल बसी। तब मैंने चांदनी के साथ मिलकर छह साल पहले ‘वॉइस ऑफ स्लम’ की स्थापना की। चांदनी की स्टोरी भी मेरी जैसी ही है। आज मेरे एनजीओ 370 बच्चे पढ़ रहे हैं। जल्द ही हम मप्र में भी यह इनिशिएटिव ले जा रहे हैं। इसका प्रयास तेज हो गया है। मैंने 30 टीचर्स की टीम खड़ी की है, जो बच्चों को पढ़ा रही है। मैं बच्चों को पढ़ा नहीं सकता, लेकिन एक अच्छा मोटिवेशनल स्पीकर हूं। मैंने यह कर दिखाया है कि सक्सेस के लिए पढ़ाई जरूरी नहीं है। जीवन के अनुभव और प्रैक्टिकल नॉलेज से भी सफलता पाई जा सकती है।


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