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पैसा, प्यार और खुशी से भी ज्यादा जरूरी हैं मानवीय मूल्य

आइटीएम ग्वालियर में ‘यूनिवर्सल ह्यूमन वैल्यूज एंड प्रोफेशनल एथिक्स‘ पर कार्यशाला  

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पैसा, प्यार और खुशी से भी ज्यादा जरूरी हैं मानवीय मूल्य

पैसा, प्यार और खुशी से भी ज्यादा जरूरी हैं मानवीय मूल्य

ग्वालियर.

आइटीएम ग्वालियर (इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड मैनेजमेंट ग्वालियर) में ऑल इंडिया कॉउन्सिल ऑफ टेक्निकल एजुकेशन नई दिल्ली (एआईसीटीई) के सहयोग से फैकल्टी डवलपमेंट प्रोग्राम के तहत ‘यूनिवर्सल ह्यूमन वैल्यूज एंड प्रोफेशनल एथिक्स‘ विषय पर तीन दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। जहां मुख्य वक्ता के रूप में एआईसीटीई से नियुक्त रिसोर्स पर्सन आलोक पांडेय, प्रेक्षक अर्जिता द्विवेदी विशेष रूप से शामिल हुईं। इस अवसर पर आइटीएम ग्वालियर की निदेशक डॉ. मीनाक्षी मजूमदार, कार्यशाला संयोजक एवं डीन एकेडेमिक्स डॉ. एसएस चौहान, भगवान सिंह परमार, संस्थान के डीन आरएंडडी डॉ. दीपेश भारद्वाज, डॉ. आदित्य विद्यार्थी, प्रीति सिंह, डॉ. आशुतोष त्रिवेदी, डीएसडब्ल्यू डॉ. मनोज मिश्रा, मेघा लहाने, मनोज बांदिल, अमित तिवारी, नरेंद्र कुमार वर्मा मौजूद रहे।


हर प्रतिभागी को अपने संस्थानों में जाकर अलख जगाना होगी
एआइसीटीई के सहयोग से आयोजित कार्यशाला में एआईसीटीई द्वारा नियुक्त रिसोर्स पर्सन आलोक पांडेय ने बेहतर इंसान बनने के साथ ही सहज और सतर्क रहने के लिए भी प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि पैसा, प्यार और खुशी से भी ज्यादा जरूरी हैं, अच्छे मानवीय मूल्य। इनके बिना दुनिया बेहद मुश्किल हो जाएगी। मानव मूल्यों में गिरावट पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि इस कार्यशाला का उद्देश्य केवल प्रमाण-पत्र प्राप्त करना नहीं होना चाहिए, बल्कि इसके द्वारा प्राप्त मूल्यों व ज्ञान को अपने छात्र समाज एवं प्रकृति में रूपान्तरित होना चाहिए। हर प्रतिभागी को अपने संस्थानों में जाकर इसकी अलख जगाना होगी।

ह्यूमन वैल्यूज को समझें और जीवन में उतारें
मुख्य वक्ता एवं रिसोर्स पर्सन आलोक पांडेय ने कहा कि बेहतर संस्थान और समाज के लिए शिक्षकों को मानवीय मूल्यों (ह्यूमन वैल्यूज) को समझना होगा। साथ ही उन्हें आत्मसात करते हुए जीवन में भी उतारना होगा। प्रतिभागियों ने यहां जो भी सीखा, उसे दूसरों को भी सिखाना होगा।

शिक्षा व्यक्ति को स्वयं के अधिकार पर निर्णय लेने की योग्यता को विकसित करती है

प्रेक्षक अर्जिता द्विवेदी ने बताया कि हर मानव सुख पूर्वक जीना चाहता है। इसके लिए वह सोचता है कि सबसे पहले बाहर ठीक हो जाए, फिर परस्परता में सब ठीक हो जाए, तो मैं भी ठीक होकर सुख पूर्वक जी सकता हूं। लेकिन वास्तविक जीवन में इस क्रम से लगातार सुख पूर्वक जीने की संभावना नहीं दिखती। इसलिए सबसे पहले खुद ठीक होना होगा। उन्होंने बताया कि शिक्षा की भूमिका निश्चित मानवीय आचरण से जीने की योग्यता को विकसित करना है। शिक्षा की भूमिका व्यक्ति को दबाव, प्रभाव से मुक्त कर स्वयं के अधिकार पर निर्णय लेने की योग्यता को विकसित करना है।

हम संबंधों को अधिक महत्व देते हैं, शब्दों को नहीं
आइटीएम ग्वालियर की निदेशक डॉ. मीनाक्षी मजूमदार ने कहा कि मुझे आशा है कि आज इस कार्यशाला में सभी प्रतिभागी शिक्षकों ने जो सीखा है वह आत्मसात कर जीवन में उतारेंगे और समाज में इसके पहलुओं के प्रति जागरूक भी करेंगे। उन्होंने कहा कि हम संबंधों पर अधिक महत्व देते हैं, किसी के शब्दों को नहीं। कार्यशाला में एक्सपट्र्स के अलावा विभिन्न संस्थानों से आए 67 प्रतिभागियों ने जिंदगी को जीना सीखने की प्रक्रिया पर महत्वपूर्ण प्रकाश डालते हुये जागरूक किया।