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राम नहीं माने तो वन से सिर पर खड़ाऊ रखकर लौटे भरत

रत जब ननिहाल से वापस आते हैं और उन्हें भ्राता राम के वनवास एवं पिता की मृत्यु का समाचार मिलता है तो वह माता कैकई से इसका कारण पूछते हैं

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राम नहीं माने तो वन से सिर पर खड़ाऊ रखकर लौटे भरत

राम नहीं माने तो वन से सिर पर खड़ाऊ रखकर लौटे भरत

ग्वालियर। मुरार में आयोजित रामलीला में मंगलवार को भरत मिलाप, केवट संवाद और दशरथ मरण की लीला का मंचन किया गया। सर्वप्रथम भगवान राम वनवास के लिए वन की ओर चलते हैं। जहां उनके अनुज लक्ष्मण सीता के साथ होते हैं। यहां उनकी मुलाकात निषादराज से होती है।

भगवान राम निषादराज से गंगा पार करने के लिए कहते हैं व केवट को बुलाते हैं। केवट गंगा पार उतारने के लिए मना करता है और कहता है कि आपके चरण से पत्थर की शिला नारी बन गई थी फिर मेरी नाव का न जाने क्या होगा। केवट भगवान राम से नाव में बैठने से पहले पांव पखारने के लिए कहता है और फिर भगवान अपने चरण धोने के लिए बोलते हैं। इसके बाद केवट राम को गंगा पार उतार देता है।

वहीं सुमंत वापस अयोध्या लौटकर आते हैं और बड़े ही दु:खी होकर दशरथ को राम के वापस न लौटने की बात बताते हैं, जिससे दु:खी होकर दशरथ राम के वियोग में प्राण त्याग देते हैं। वहीं भरत जब ननिहाल से वापस आते हैं और उन्हें भ्राता राम के वनवास एवं पिता की मृत्यु का समाचार मिलता है तो वह माता कैकई से इसका कारण पूछते हैं तो कैकई उन्हें बताती हैं। सुनकर भरत कैकई पर बहुत क्रोधित होते हैं। फिर भैया राम को वापस लेकर आने के लिए वन जाने का प्रण करते हैं।

इधर वन में सीता को एक अशुभ स्वप्न आता है जिसमें माताओं को मलिन भेष में देखती हैं। भरत राम से मिलने आते हैं और पिता की मृत्यु के बारे में बताते हैं। इस पर राम दु:खी होते हैं, बाद में भरत को वापस लौटने के लिए कहते हैं। राम वापस न लौटने की विवशता बताते हैं फिर भरत राम की खड़ाऊ अपने सर पर रखकर ले जाते हैं। रामलीला में आचार्य प्रमोद कृष्ण कल्कि पीठाधीश्वर, स्वामी नवीनंद महाराज दाहोद आदि ने भगवान राम की आरती की । बुधवार को सीता हरण की लीला का मंचन किया जाएगा।