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देरी को माफ किया तो दूसरे केस भी प्रभावित होंगे, जिनमें बिलंब का पर्याप्त कारण नहीं होता

हाईकोर्ट की एकल पीठ ने एक सेकेंड अपील को खारिज करते हुए कहा कि तीन साल के देरी के लिए पर्याप्त कारण नहीं बताए हैं। इसलिए बिलंब को माफ नहीं किया जा सकता है। यदि बिलंब माफी पर उदारता बरती जाती है तो उन मामलों पर भी प्रभाव पड़ेगा, जिनमें बिलंब के पर्याप्त कारण स्पष्ट नहीं है।

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gwalior high court

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हाईकोर्ट की एकल पीठ ने एक सेकेंड अपील को खारिज करते हुए कहा कि तीन साल के देरी के लिए पर्याप्त कारण नहीं बताए हैं। इसलिए बिलंब को माफ नहीं किया जा सकता है। यदि बिलंब माफी पर उदारता बरती जाती है तो उन मामलों पर भी प्रभाव पड़ेगा, जिनमें बिलंब के पर्याप्त कारण स्पष्ट नहीं है। अधीनस्थ न्यायालय ने वाद को खारिज करने में कोई गलती नहीं की है।

दरअसल मुन्नी अन्य ने शिवपुरी के सिविल कोर्ट में 2005 में जमीन को लेकर एक वाद पेश किया। वाद खारिज होने के बाद अतिरिक्त सत्र न्यायालय में तीन साल बाद अपील दायर की। देर से अपील दायर करने के आधार पर सिविल कोर्ट ने वाद को खारिज कर दिया। इसके बाद 2009 में हाईकोर्ट में सकेंड अपील दायर की। उनकी ओर से तर्क दिया कि किसना इस मामले को देख रहे थे, लेकिन किसना की मृत्यु 2005 में हो गई थी। इस कारण वाद की जानकारी नहीं थी। जब इसकी मुन्नी अन्य को जानकारी मिली तो अपील दायर की, लेकिन अधिनस्थ न्यायालय ने देरी का हवाला देकर गलत तरीके से अपील खारिज की है। राज्य शासन ने अपील का विरोध किया। कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद याचिका खारिज कर दी।

क्या है मामला

शिवपुरी के कोलारस की जमीन पर किसना ने दावा पेश किया था। उनका तर्क था कि जमीन उन्हें पट्टे पर दी गई थी, लेकिन बाद में शासन ने पट्टा निरस्त कर दिया। किसना की मृत्यु के बाद वाद खारिज हो गया। किसना के वारिशानों को वाद खारिज होने की जानकारी मिली तो तो अपील दायर की। इस कारण अपील पेश करने देर हुई।