
ग्वालियर। शनिवार से पितृ पक्ष की शुरुवात हो गयी है। इस माह में लोग अपने पूर्वजों के आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध और तर्पण करते हैं। और देशभर के अलग अलग तीर्थों में जाकर पिंडदान और धार्मिक अनुष्ठान कराते हैं। लेकिन एक ऐसा भी तीर्थ है, जहां पूर्वजों की अस्थियां तीन दिनों में पानी में विलीन हो जाती हैं। उत्तर प्रदेश के कासगंज स्थित सोरों सूकरक्षेत्र में भगवन विष्णु के तृतीय अवतार भगवान वराह को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। यहां स्थित कुंड में उन्होंने अपना शरीर त्यागा था, और देवी पृथ्वी से इस तीर्थ के माहात्म्य के बारे में बताया था। वराह पुराण के अनुसार सोरों जी में पिंडदान करने से मृत आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है। यहाँ उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात समेत भारत के अन्य प्रदेशों से प्रतिदिन सैकड़ों यात्री अपने पूर्वजों की अस्थियां विसर्जित करने आते हैं।
सोरों में ही धरती को बचाया गया
सोरों वह स्थान है जहां भगवन वराह ने हिरण्याक्ष दैत्य से देवी पृथ्वी की रक्षा की थी। हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को कैद कर लिया था, तब भगवान विष्णु ने वराह रूप धारण कर हिरण्याक्ष का वध किया और धरती को बचाया था। भगवान वराह ने पृथ्वी को अपनी नाक पर रखा है। यहां आज भी भगवान के इस दिव्य स्वरूप का दर्शन करने लोग दूर दूर से आते हैं और हरि की पौड़ी में स्नान कर धार्मिक अनुष्ठान करते हैं
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विदेशों के वैज्ञानिक भी कर चुके हैं जाँच
श्री वराह पीठाधीश्वर और न्याय वेदांत आचार्य काशी के महामंडलेश्वर स्वामी आशुतोष आनंद गिरी जी महाराज के मुताबिक इस पवित्र स्थल की जर्मनी समेत अन्य देशों के वैज्ञानिकों ने पड़ताल की, लेकिन उन्हें कुछ भी हासिल नहीं हुआ। भगवान वराह द्वारा बनाया गया यह कुंड आज भी रहस्यमयी बना हुआ है। इसकी गुत्थी अभी तक कोई सुलझा नहीं पाया है। इसके आलावा यहाँ भगवान वराह का वर्षों पुराना चक्र और एशिया का प्राचीन गृद्ध वट भी मौजूद है। और यहाँ प्राचीन सीताराम मंदिर भी स्थित है, जिसका इतिहास सम्राट पोरस के समय से जोड़ा जाता है, इस मंदिर को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने धरोहर के रूप में चिन्हित किया है। ये विशेषताएं इस तीर्थ को एक विशेष पहचान दिलाती हैं।
तुलसीदास का जन्म भी यहीं हुआ
शोधकर्ता उमेश पाठक ने बताया सोरों न केवल धार्मिक नगरी बल्कि ऐतिहासिक स्थल भी है। यहाँ रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास का भी जन्म हुआ था। उनके जन्मस्थल को लेकर कई तरह की भ्रांतिया हैं, लेकिन अनेक साक्ष्य ऐसे हैं जिससे ये सिद्ध हो जाता है, की सोरों ही गोस्वामी जी की जन्मस्थली है। यहाँ के मोहल्ला बदरिया में उनकी पत्नी रत्नावली का घर आज भी स्थित है, तुलसीदास जी का घर मुसलमानों के मोहल्लों में मौजूद है और उनके गुरु नरहरिदास की पाठशाला आज भी मोहल्ला चक्रतीर्थ में स्थित है। वहीं तुलसीदास जी ने खुद रामचरितमानस में सूकरखेत का जिक्र किया है और उनकी शब्दावली इसी क्षेत्र की भाषा से मिलती जुलती है, इसका प्रमाण आचार्य रामचंद्र शुक्ल और डॉक्टर जॉर्ज ग्रियर्सन जैसे विद्वान भी दे चुके हैं।
सैकड़ों वर्ष पुराने नाम दस्तावेजों में है
तीर्थपुरोहित रामाधार दुबे ने कहा सोरों जी आने वाले तीर्थयात्री अपने पूर्वजों के सैकड़ों वर्ष पुराने नामों को तीर्थ पुरोहितों से सुनते हैं। यहाँ पुरोहितों के पास बही में यात्रियों के पूर्वजों के नाम मौजूद हैं। तीर्थयात्री हरि की पौड़ी में पिंडदान कराते हैं ताकि पूर्वजों की आत्मा को शांति मिल सके
सरकार भी सहयोग कर रही
कासगंज भाजपा महिला मोर्चा की जिला उपाध्यक्ष अनीता उपाध्याय सोरों सियासी गलियारे के केंद्र में भी रहा है। यहाँ पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी समेत कई राजनेता भगवान वराह के दर्शन करने आते रहे हैं। वर्षों से सोरों को तीर्थ का दर्जा दिलाने के लिए आंदोलन होता रहा, लेकिन अभी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सोरों को तीर्थस्तल का दर्जा दिलाया और सोरों जी की पावन धरा पर आकर दर्शन भी किये। सरकार तीर्थ के प्रस्तावित विकास कार्यों को लेकर पूरी तरह प्रतिबद्धित है।
Published on:
11 Sept 2022 08:42 pm
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