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इंदौर निगम के अधिकारी साढ़े पांच घंटे फील्ड में रहते, ग्वालियर में निकलते नहीं, इसलिए सफाई में पीछे

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की युगल पीठ ने बुधवार को शहर की बदहाल सफाई व्यवस्था और केदारपुर लैंडफिल साइट से कचरा हटाने को लेकर दायर जनहित याचिका पर

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कोर्ट। पत्रिका फाइल फोटो

ग्वालियर. मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की युगल पीठ ने बुधवार को शहर की बदहाल सफाई व्यवस्था और केदारपुर लैंडफिल साइट से कचरा हटाने को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की। सुनवाई के दौरान इंदौर की सफाई व्यवस्था का अध्ययन कर लौटी कमेटी ने ग्वालियर नगर निगम की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े किए।

कमेटी ने कोर्ट को बताया कि इंदौर में नगर निगम के अधिकारी रोज सुबह 5:30 बजे से 11 बजे तक फील्ड में रहकर सफाई व्यवस्था की निगरानी करते हैं, जबकि ग्वालियर में अधिकारी मैदान में नजर ही नहीं आते। यही वजह है कि ग्वालियर की सफाई व्यवस्था लगातार पिछड़ती जा रही है। कोर्ट ने इस स्थिति को गंभीर मानते हुए नगर निगम को युद्ध स्तर पर सुधार के निर्देश दिए।

केदारपुर लैंडफिल को लेकर जनहित याचिका पर हाईकोर्ट के निर्देश से कमेटी ने इंदौर-ग्वालियर की तुलनात्मक रिपोर्ट पेश की जिसमें बताया ग्वालियर में डोर-टू-डोर कचरा संग्रहण के लिए 247 वाहन हैं, जबकि जरूरत 600 की है। संसाधनों की कमी व्यवस्था बिगडऩे का कारण है।

इंदौर की सफाई व्यवस्था से सीख

  • डोर-टू-डोर कलेक्शन: हर वाहन में तीन सदस्य—दो निगम कर्मी और एक एनजीओ प्रतिनिधि। कचरा गाड़ी में डालने से पहले ही पांच श्रेणियों में अलग किया जाता है। समय तय होने से नागरिकों का सहयोग भी मिलता है।
  • सेग्रीगेशन सेंटर: पूरी क्षमता से काम, हर कर्मचारी सक्रिय, कचरे का वैज्ञानिक तरीके से निपटान।
  • बायोगैस प्लांट: गीले कचरे से सीएनजी उत्पादन, जबकि सूखे कचरे से निगम को सालाना करीब 13 करोड़ की आय।
  • लैंडफिल मुक्त शहर: इंदौर में लैंडफिल साइट समाप्त कर वहां पौधरोपण किया जा चुका है, जबकि ग्वालियर में आज भी कूड़े का पहाड़ खड़ा है।

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