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Jagannath Rath Yatra 2020 : 174 साल से मंदिर में अपने आप फट जाता है चावल का मटका, देखें वीडियो

ग्वालियर से 14 किमी दूर कुलैथ गांव में है भगवान जगन्नाथ का मंदिर

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Snana Purnima 2021 Date

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ग्वालियर। मध्यप्रदेश के चंबल संभाग में कुछ ऐसे चमत्कारी मंदिर हैं जिनके किस्से दूर दूर तक फैले हुए हैं। ऐसा ही एक मंदिर ग्वालियर से महज 14 किमी दूर कुलैथ गांव में है। जहां भगवान जगन्नाथ का एक मंदिर है। इस मंदिर में भी एशिया के तर्ज पर बड़े धूमधाम से रथ यात्रा निकली जाती है। हालांकि इस बार कोरोना संक्रमण के चलते प्रशासन की ओर से अनुमति नहीं मिलने के कारण रथयात्रा नहीं निकाली गई। आपको जानकर हैरानी होगी की जब भगवान जगन्नाथ की यहां रथ यात्रा निकाली जाती है उस वक्त 11 कलश के अंदर चावल को पकाया जाता है और जब रथ यात्रा चारों तरफ घूमकर लौट के मंदिर के पास आता है तो उस दौरान कलश को भगवान जग्गनाथ और बलदाऊ,देवी सुभद्रा के सामने इन रखा जाता है और कुछ देर के बाद सभी कलश अपने आप फट जाते हैं। मिट्टी के इस कलश का टूटना अपने आप में एक चमत्कार है।

निकाली जाती है जगन्नाथ की रथयात्रा
बताया जाता है कि संत सावलेदास जगन्नाथ जी के बड़े भक्त थे और बचपन से ही भगवान जगन्नाथ की अनन्य भक्ति के चलते उन्होंने कुलैथ ग्राम से उड़ीसा स्थित जगन्नाथपुरी तक की सात बार कनक दंडवत परिक्रमा की। मंदिर के पुजारी किशोरीलाल ने बताया कि भगवान जगन्नाथ जी ने संत सावलेदास को स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि वह कुलैथ ग्राम में मंदिर बनाएं। सांक नदी में चंदन की लकड़ी बहती हुई मिलेंगी उनसे मूर्ति की स्थापना करें। संत सावलेदास ने कहा कि वह कैसे मानें कि मूर्ति में भगवान का वास है तो स्वप्न में ही भगवान ने कहा कि मूर्ति के सामने जब चावलों से भरा घट लेकर भोग लगाओगे तो घट चार भाग में स्वयं फूट जाएगा। संत सावलेदास दूसरे दिन जब सांक नदी के किनारे बैठे थे तभी तीन चंदन की लकड़ी बहती हुई वहां आ गईं। इन लकडिय़ों को लेकर वे गांव में आए और गांव वालों को पूरी बात बताई। संत सावलेदास की बात सुनकर गांव वालों ने उन्हें मंदिर बनाकर भगवान जगन्नाथ की पूजा-अर्चना करने के लिए कहा। इसके बाद उन्होंने गांव में भगवान जगन्नाथ जी का मंदिर बनाया। हर साल जब जगन्नाथ जी की यात्रा उड़ीसा में निकलती है उसी दिन कुलैथ में भी भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली जाती है।

कुलैथ के लिए होते हैं रवाना
कुलैथ गांव के लगभग 174 साल पुराने इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ सुभद्रा और बलभद्र की रथ यात्रा ठीक उसी दिन आयोजित की जाती है, जिस दिन पुरी में इसका आयोजन होता है। परंपरा है कि पुरी में यात्रा के दौरान जब कुलैथ प्रस्थान का मुहूर्त आता है तो बाकायदा घोषणा की जाती है कि अब भगवान अपनी बहन और दाऊ के साथ कुलैथ रवाना हो रहे हैं।

मिट्टी के घड़ों में लगता है भोग
भगवान जगन्नाथ को मिट्टी के घड़ों में भात भरकर भोग लगाया जाता है और घट तुंरत ही फट जाते हैं। यह भोग लोगों को लुटाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ के भात का एक दाना भी यदि कोई अपने खाद्यानों में रखे तो उसके यहां कभी भी अनाज की कमी नहीं रहेगी। संत सावलेदास की तीसरी पीढ़ी के किशोरीलाल अभी मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं। कुलैथ के मुख्य पुजारी ने बताया कि 1816 से 1844 तक महज 9 वर्ष की बाल अवस्था में उनके पूर्वज सांबलदास जी लगातार कनक दंडवत करते हुए 7 बार पुरी की यात्रा की। उनकी भक्ति से गदगद होकर भगवान जगन्नाथ कुलैथ में उनके साथ आ गए। आज भी कुलैथ में भगवान जगन्नाथ के चमत्कारों को देखा व महसूस किया जा सकता है। ऐसी मान्यता है कि पुरी में जब तक प्रभु का अवतार नहीं होगा, तब तक उनकी शक्ति यथावत बनी रहेगी।

दो दिवसीय मेला और रथयात्रा उत्सव
ग्वालियर से 14 किमी दूर स्थित ग्राम कुलैथ में भगवान जगन्नाथ मंदिर में मंगलवार से दो दिवसीय वार्षिकोत्सव शुरू हो गया है। पहले दिन शाम को भगवान के समक्ष 11 घट भरकर रखे गए जो बाद में फूट गए। हालांकि इस बार कोरोना संक्रमण के चलते प्रशासन की ओर से अनुमति नहीं मिलने के कारण रथयात्रा नहीं निकाली गई।