
यहां हाथी-घोड़ों पर सवार होकर निकला करते थे राजा और सरदार, अब ऐसे मनाया जाता है दशहरा
ग्वालियर। विजयादशमी पर्व पर बुराई के प्रतीक रावण के पुतले का दहन कर जीत का उल्लास मनाने की परंपरा पूरे देश में है। इसके अलावा अलग-अलग क्षेत्रों में कई ऐसी परंपराएं हैं, जिनका अपना इतिहास और महत्व है। ग्वालियर में सिंधिया रियासत काल में सुबह भव्य चल समारोह निकाला जाता था,जिसमें राजा और सरदार हाथी-घोड़ों पर सवार होकर निकलते थे। जयविलास पैलेस से गोरखी तक निकलने वाले चल समारोह का अलग आकर्षण होता था, जिसे देखने के लिए लोग अपने घरों की छतों पर इक_े हो जाते थे और जगह-जगह स्वागत करते थे। यह परंपरा 200 साल पुरानी है, लेकिन आपातकाल के बाद से बंद है। इसके साथ ही शाम को सिंधिया राजघराने के मुखिया द्वारा शमी पूजन किया जाता है, यह परंपरा आज भी कायम है।
राजसी पोशाक में करते हैं शमी पूजन
दशहरे के दिन सिंधिया राजघराने की परंपरानुसार शाम को शमी पूजन किया जाता है। इसमें राजघराने के परिवार के मुखिया द्वारा तलवार को शमी के पेड़ से स्पर्श कराया जाता है, इससे गिरने वाली शमी की पत्तियों को सिंधिया रियासत में रहे सरदार लूटते हैं, शमी की पत्तियों को सोने का प्रतीक माना जाता है। मांढरे की माता मंदिर पर लगे शमी के वृक्ष का हर साल पूजन किया जाता है। इसके लिए सिंधिया परिवार के मुखिया राजसी पोशाक पहनते हैं।
पूजन के दौरान पहनते हैं सौ गज की पगड़ी
1811 में शुरू हुआ चल समारोह
Published on:
08 Oct 2019 06:26 pm
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