
तीन दिन में घूमा महेश्वर और मांडू, आज भी नर्मदा में अर्पित होते हैं 15 हजार शिवलिंग
ग्वालियर.
मेरा कॉलेज टाइम में महेश्वर जाना हुआ था। यादें धूमिल हो रही थीं। फैमिली का भी मन घूमने जाने का था तो वीकेंड पर प्लान कर लिया। एक दिन की एक्स्ट्रा छुट्टी लेकर तीन दिन में महेश्वर और मांडु घूमकर वापस ग्वालियर आ गए। ज्यादा समय महेश्वर में बिताया। सबसे बड़ा फायदा फ्लाइट कनेक्टिविटी का मिला। महज डेढ़ घंटे में हम इंदौर पहुंच गए। ये तीन दिन मुझे, मेरी पत्नी छाया और बेटे अलंकार को बहुत अच्छे लगे। लम्बे समय बाद हमने वीकेंड का अच्छे से यूटिलाइज किया। आज भी वहां की यादें जेहन में ताजा हैं।
राजा सहस्त्रार्जुन ने रावण को 6 मास के लिए बनाया था बंदी
रानी अहिल्या बाई की नगरी महेश्वर का जिक्र आते ही बेटे ने सबसे पहले उसकी हिस्ट्री पढ़ी। इससे हम सभी की यात्रा और भी रोचक हो गई। मुझे काफी कुछ जानकारी पहले से थी और बाकि जो शेष थी वो बेटा बताता गया। वहां गाइड भी मिले, जिन्होंने बताया महेश्वर नर्मदा नदी के किनारे स्थित एक प्राचीन नगरी है। प्राचीन हिन्दू ग्रंथों में इसे माहिष्मती कहा गया है। कहा जाता है कि एक समय यहीं राजा सहस्त्रार्जुन ने रावण को 6 मास के लिए बंदी बनाया था। राजराजेश्वर मंदिर परिसर में उनका मंदिर आज भी बना है। रामायण एवं महाभारत दोनों महाकाव्यों में महेश्वर का उल्लेख मिलता है।
आवासीय क्षेत्र के दर्शन होटल के अतिथि ही कर सकते हैं
मैंने अहिल्या बाई को जैसा पढ़ा था। उतना ही सादगी भरा रहन-सहन भी देखकर आया। उनका शयन कक्ष, स्नानागार देखा, जो एकदम साधारण था। अहिल्या गढ़ अथवा महल 16वीं शताब्दी में बना है, जिन्हें संभवत: मुगलों ने बनाया था। यह महल अब एक विरासती होटल है। इसका अर्थ है कि महल के मुख्य भागों के दर्शन तो सब पर्यटक कर सकते हैं, किन्तु महल के आवासीय क्षेत्र के दर्शन केवल इस होटल के अतिथि ही कर सकते हैं।
पहले सवा लाख अब रोज बनते हैं 15 हजार शिवलिंग
गाइड ने बताया कि रानी अहिल्या बाई के समय 108 ब्राह्मण प्रतिदिन यहां की काली मिट्टी से सवा लाख छोटे शिवलिंग का निर्माण करते थे। उन शिवलिंगों की आराधना कर उन्हें नर्मदा में अर्पित किया जाता था। वर्तमान में 11 ब्राह्मण हर दिन 15 हजार शिवलिंग बनाते हैं, उनकी पूजा करते हैं एवं नर्मदा में अर्पित करते हैं। यह विधि केवल निर्दिष्ट ब्राह्मणों द्वारा ही की जाती है। हां इस लुभावने दृश्य को देखा जा सकता है। मंत्रोच्चारण में भाग भी ले सकते हैं।
कई पीढिय़ों से जुलाहे बना रहे महेश्वरी साड़ी
रानी ने उस समय गुजरात से जुलाहों को लेकर आई थीं, जिन्हें बसाया गया। उस समय सैकड़ों जुलाहे थे, जो साड़ी लूम पर तैयार करते थे। आज महेश्वरी साड़ी के नाम से प्रसिद्ध हैं। अब उनके वंशज इस काम को कर रहे हैं। कई लोगों ने काम बंद भी कर दिया है।
अविनाश मिश्रा, वाइस प्रेसीडेंट (एचआर) गोदरेज
Published on:
26 Sept 2021 11:11 am
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