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नवसंवत्सर विशेष :   गुडी-पडवा का इतिहास, मान्यताएं और कारण

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा या गुड़ी पड़वा के दिन से ही ग्रहों, वारों, मासों और संवत्सरों का प्रारंभ गणितीय और खगोल शास्त्रीय संगणना के अनुसार किया जाता है। यह शास्त्रसम्मत कालगणना व्यावहारिकता की कसौटी पर खरी उतरी है। 

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rishi jaiswal

Apr 07, 2016

gudi padwa

gudi padwa


ग्वालियर। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा अर्थात भारतीय नववर्ष यानी विक्रम संवत का प्रथम दिन है और इसी दिन से ग्रहों, वारों, मासों और संवत्सरों का प्रारंभ गणितीय और खगोल शास्त्रीय संगणना के अनुसार माना जाता है। आज भी जनमानस से जुड़ी हुई यही शास्त्र सम्मत कालगणना व्यावहारिकता की कसौटी पर खरी उतरी है। इसे राष्ट्रीय गौरवशाली परंपरा का प्रतीक माना जाता है। विक्रमी संवत् किसी संकुचित विचारधरा या पन्थाश्रित नहीं है। यह संवत्सर किसी देवी, देवता या महान पुरुष के जन्म पर आधरित नहीं है। हमारी यह परंपरा प्रकृति के खगोलशास्त्रीय सिद्धांत पर आधरित है और भारतीय कालगणना का आधार पूर्णतया पन्थ निरपेक्ष है।


ब्रह्म पुराण के अनुसार चैत्रामास के प्रथम दिन ही ब्रह्मा ने सृष्टि संरचना प्रारंभ की। इसीलिए हिन्दू चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नए साल का आरम्भ मानते हैं। महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने इसी दिन से सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीना और वर्ष की गणना करते हुए 'पंचांग' की रचना की। यह संवत्सर किसी देवी, देवता या महान पुरुष के जन्म पर आधारित नहीं। यह गौरवशाली परंपरा विशुद्ध अर्थो में प्रकृति के खगोलशास्त्नीय सिद्धातों पर आधारित है।


इतिहास के झरोखे में...
मान्यता के अनुसार इसी दिन सृष्टि का सृजन, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का राज्याभिषेक, मां दुर्गा की उपासना की नवरात्र व्रत का प्रारंभ, युगाब्द या युधिष्ठिर संवत का आरम्भ, उज्जयिनी सम्राट-विक्रमादित्य द्वारा विक्रमी संवत का प्रारंभ व महषि दयानन्द द्वारा आर्य समाज की स्थापना की गई।

पर्व एक नाम अनेक
चैत्रा मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या नववर्ष या उगादि, युगादि कहा जाता हैं, इस दिन हिन्दू नववर्ष का आरम्भ होता है। `गुड़ी´ का अर्थ `विजय पताका´ होती है। कहा जाता है कि शालिवाहन नामक एक कुम्हार के लड़के ने मिट्टी के सैनिकों की सेना बनाई और उस पर पानी छिड़कर उनमें प्राण फूंक दिए और इस सेना की मदद से शक्तिशाली शत्रुओं को पराजित किया। इसी विजय के प्रतीक के रूप में शालिवाहन शक का प्रारंभ हुआ। `युग´ और `आदि´ शब्दों की सन्धि से बना है `युगादि´। आंध्रप्रदेश और कर्नाटक में `उगादि´ और महाराष्ट्र में यह पर्व `गुड़ी पड़वा´ के रूप में मनाया जाता है। कश्मीरी हिन्दुओं के लिए नववर्ष यानी नवरेह एक महत्वपूर्ण उत्सव है। बंगाल में नव वर्ष, पंजाब में बैसाखी आदि त्योहार भी इसी के आस-पास मनाये जाते हैं।


इस दिन की कई मान्यताएं...
कहा जाता है कि इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण किया था। इसमें मुख्यतया ब्रह्माजी और उनके द्वारा निर्मित सृष्टि के प्रमुख देवी-देवताओ, यक्ष-राक्षस, गंधर्व, ऋषि-मुनियों, नदियों, पर्वतों, पशु-पक्षियां और कीट पतंगो का ही नहीं, रोगों और उनके उपचारों तक का भी पूजन किया जाता है। इस दिन आंध्रप्रदेश प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट में सारे घरों को आम के पेड़ की पत्तियों के बन्दनवार से सजाया जाता है। सुखद जीवन की अभिलाषा के साथ-साथ यह बन्दनवार समृधि व अच्छी फसल के भी परिचायक हैं। `उगादि´ के दिन ही पंचांग तैयार होता है। चैत्रा मास की शुक्ल प्रतिपदा को महाराष्ट में गुड़ीपडवा कहा जाता है। वर्ष के साढे तीन मुहूर्तों में गुड़ीपड़वा की गिनती होती है। शालिवाहन शक का प्रारंभ भी इसी दिन से होता है।
कई लोगों की मान्यता है कि इसी दिन भगवान राम ने बाली के अत्याचारी शासन से दक्षिण की प्रजा को मुक्ति दिलाई। बाली के त्रास से मुक्त हुई प्रजा ने घर-घर में उत्सव मनाकर ध्वज फहराए जाते है। आज भी घर के आंगन में गुड़ी खड़ी करने की प्रथा महाराष्ट्र में प्रचलित है। इसीलिए इस दिन को `गुड़ीपड़वा´ नाम दिया गया।


दो ऋतुओं का संधिकाल
आज भी हमारे देश में प्रकृति, शिक्षा तथा राजकीय कोष आदि के चालन-संचालन में मार्च, अप्रैल के रूप में चैत्रा शुक्ल प्रतिपदा को ही देखते हैं। यह समय दो ऋतुओं का सन्धिकाल है। इसमें रातें छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं। प्रकृति नया रूप ले लेती है। प्रतीत होता है कि प्रकृति नवपल्लव धारण कर नव संरचना के लिए उफर्जस्वित होती है। मानव, पशु-पक्षी, यहां तक कि जड़-चेतन प्रकृति भी प्रमाद और आलस्य को त्याग सचेतन हो जाती है। बसन्तोत्सव का भी यही आधर है। इसी समय बपर्फ पिघलने लगती है। आमों पर बौर आने लगता है। प्रकृति की हरीतिमा नवजीवन का प्रतीक बनकर हमारे जीवन से जुड़ जाती है।