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कार्तिक पूर्णिमा : साल में एक बार खुलते है इस मंदिर के पट,लाखों की संख्या में आते हैं श्रद्धालु

भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र भगवान कार्तिकेय को युद्ध का देवता माना जाता है।

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ग्वालियर। हिन्दू धर्म में पूर्णिमा महत्वपूर्ण स्थान रखती है। प्रत्येक वर्ष में 12 पूर्णिमा होती है। लेकिन जब अधिक मास या मलमास आता है तब इनका इनकी संख्या 13 हो जाती है। कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपूरी पूर्णिमा भी कहा जाता है। क्योकि इसी कार्तिक पूर्णिमा को भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर का वध किया था और त्रिपुरी नाम से प्रसिद्ध हुए थे। हिन्दू धर्मानुसार भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र भगवान कार्तिकेय को युद्ध का देवता माना जाता है। दक्षिण भारत में भगवान कार्तिकेय को मुरुगन या अयप्पा नाम से भी जाना जाता है। भगवान कार्तिकेय शक्ति और ऊर्जा के प्रतीक माने जाते हैं।

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मान्यतानुसार कोर्ट,जमीन,पैसे आदि के विवाद को निपटाने से पहले भगवान कार्तिकेय की आराधना की जाए तो उसमें सफलता प्राप्त होती है। शहर के जीवाजीगंज में स्थित भगवान कार्तिकेय स्वामी मंदिर के पट साल में एक बार ही खुलते हैं। जहां भक्त भगवान कार्तिकेय के दर्शन करने दूर दराज से आते हैं। यहां कार्तिक मास की पूर्णिमा पर ही भगवान कार्तिकेय के पद खुलते है।साल में सिर्फ एक बार खुलने वाला यह मंदिर करीब 400 वर्ष पुराना है।

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जहां दूसरे प्रदेशों से भी भारी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। इस मंदिर पर कार्तिक पूर्णिमा पर भगवान कार्तिकेय का विशेष पूजन भी किया जाता है। शहर के पंडित सतीश सोनी ने बताया कि जब भगवान शिव व माता पार्वती ने अपने दोनों पुत्र गणेश और कार्तिकेय से कहा था कि जो तीनों लोकों की परिक्रमा करके पहले हमारे पास आएगा,उसकी पूजा सबसे पहले मानी जाएगी। गणेश ने माता-पिता की परिक्रमा लगाई, क्योंकि उनमें तीनों लोक समाहित होते हैं। गणेश की इस बुद्धिमता से प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि उनकी पूजा सभी देवताओं से पहले होगी।

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वहीं जब कार्तिकेय तीनों लोकों की परिक्रमा लगाकर वापस लौटे तो देखा कि गणेश को देवताओं ने अग्रणी मान लिया है। इससे क्रोधित होकर कार्तिकेय एक गुफा में जाकर बैठ गए और स्वयं को ही श्रॉप दे डाला कि जो महिला उनके दर्शन करेगी वह विधवा हो जाएगी तथा पुरुष के दर्शन करने पर उसे सात जन्म तक नरक को भोगना होगा तब भगवान शिव और पार्वती ने उन्हें समझाया। गुस्सा शांत होने के बाद कार्तिकेय ने कहा,उनके जन्मदिन कार्तिक पूर्णिमा के दिन जो लोग उनकी पूजा करेंगे,उनके सभी कष्ट दूर हो जाएंगे। तभी से भगवान कार्तिकेय की पूजा साल में एक बार कार्तिक पूर्णिमा पर की जाती है।

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शिव की आराधना से भी होते हैं प्रसन्न
भगवान शिव के बड़े पुत्र कार्तिकेय की उपासना से सभी कष्टों का निवारण होता है। धर्मग्रन्थों के अनुसार मार्ग शिष मास शुक्ल पक्ष की सष्टमी तिथि को भोले नाथ के बड़े पुत्र कार्तिकेय जी ने जन्म लिया था। कार्तिकेय का निवास प्रसिद्ध 12 ज्योर्तिलिंग में से एक श्री शैल पर्वत मल्लिका अर्जुन पर माना गया है। जिसे दक्षिण का कैलाश भी कहा गया है। माल्लिका का अर्थ पार्वती, अर्जुन का अर्थ भगवान शिव से माना गया है। साधारण जल से शिवलिंग पर जलाभिषेक से प्रसन्न होकर मनोवांछित फल देने वाले भगवान शिव की आराधना से भी कार्तिकेय प्रसन्न होकर कष्टों का हरण करते हैं।

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भगवान का होता है विशेष श्रृंगार
भगवान कार्तिकेय के दर्शन के लिए मध्यप्रदेश,दिल्ली,पंजाब,राजस्थान,उत्तरप्रदेश व आदि प्रदेशों से भी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। मंदिर की देखरेख करने वाले पंडित ने बताया कि हमारी छठवीं पीढ़ी मंदिर में सेवा कर रही है। उन्होंने बताया कि कार्तिक पूर्णिमा पर रात 12 बजे के बाद मंदिर के पट खोलकर भगवान कार्तिकेय का श्रृंगार किया जाएगा और सुबह 4 बजे से श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ मंदिर खोला जाता है।

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सााथ ही अगले दिन सुबह 4 बजे पटबंद कर दिए जाते है। इस दिन जिन श्रद्धालुओं की मनोकामनापूर्ण हो जाती है वे एक ही दीपक में 365 बत्तियां लगाकर भगवान की आरती भी करते हैं। मंदिर परिसर में गंगा, जमुना, सरस्वती, पवनपुत्र, वेणीमाधव, लक्ष्मीनारायणकी प्रतिमाएं भी स्थापित हैं।