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‘मेघ मल्हार’ में सुरों की बारिश, राग देस में सुनाईं प्रेम और विरह की बंदिशें

आइटीएम यूनिवर्स में शास्त्रीय संगीत जोड़ी राहुल-रोहित मिश्रा की प्रस्तुति

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‘मेघ मल्हार’ में सुरों की बारिश, राग देस में सुनाईं प्रेम और विरह की बंदिशें

‘मेघ मल्हार’ में सुरों की बारिश, राग देस में सुनाईं प्रेम और विरह की बंदिशें

ग्वालियर.

आइटीएम यूनिवर्स में ‘मेघ-मल्हार-2023‘ के दूसरे दिन भी सुरों की बारिश हुई। तीन घंटे तक देश के ख्यातिनाम शास्त्रीय गायकों की जोड़ी राहुल-रोहित मिश्रा ने अपनी प्रस्तुति से हर एक का दिल जीत लिया। उन्होंने अपने सौम्य और सादगीपूर्ण अंदाज में राग देस पर बंदिश सुनाई, जिसके बोल थे गगन गरजत चमकत दामिनि...। इसके बाद इस जोड़ी ने बनारस घराने की बंदिश आयो गरजत बदरवा चहुंओर से उमड़-घुमड़ अत... की उम्दा प्रस्तुति दी। एक के बाद एक प्रेम, विरह और भक्ति के रस में घुलीं ठुमरियां, कजरी, दादरा, झूला और भजनों की सुमधुर पेशकश की।

घिर आई है कारी बदरिया राधे बिन लागे न मोरा जिया...
बढ़ते हुए क्रम में बनारस की मशहूर ठुमरी राग देस में ‘हे मां कारी बदरिया बरसे, पिया नहीं आये..., ज्यों-ज्यों पपिहा पिहू-पिहू रटत है.. बरसत सावन तुम बिन सेज मोरा जियरा मोरा तरसे... की प्रस्तुति देकर खूब तालियां बटोरीं। इसके बाद अपनी गुरु गिरजा देवी द्वारा लिखित कजरी घिर आई है कारी बदरिया राधे बिन लागे न मोरा जिया... सुनाया। उन्होंने झूला और कई भजनों की अपनी मधुर आवाज और शास्त्रीय संगीत की गला के साथ प्रस्तुति दी।

इंटरव्यू
कला और संस्कृति को युवाओं में हस्तांतरित करने घर से करें शुरुआत
आज हमारे देश की युवा पीढ़ी का झुकाव पाश्चात्य संस्कृति की ओर है। क्योंकि हम युवाओं को बचपन से लेकर बड़े होने तक सभी सामग्रियां और संस्कृति तो पाश्चात्य की ही परोस रहे हैं। हमें भारतीय संस्कृति और शास्त्रीय कला को पहचानना होगा। इसका डंका देश और विदेश में बजता है। इस कला और संस्कृति को युवाओं में हस्तांतरित करने के लिए हमें अपने घर से ही शुरुआत करनी होगी। यह बात शास्त्रीय संगीतज्ञ राहुल-रोहित मिश्रा ने कही। उन्होंने कहा कि बच्चों को सप्ताह में कम से कम एक दिन में सिर्फ 10 मिनट तक शास्त्रीय संगीत, नृत्य और कला के बारे में बताएं, तभी तो उनकी रूचि हमारी कला को अपनाने और संस्कृति को सहेजने में होगी।

सपना था पायलट बनना, संगीत को समझा तो इसी के हो गए
बचपन में सभी के ढेरों सपने होते हैं, कोई सोचता है मैं इंजीनियर बनूं तो कोई कलेक्टर बनने की सोचता है। ऐसा ही हमारे साथ भी था। हमारे दादा जी प्रसिद्ध शास्त्रीय गायक थे और वह हमेशा संगीत सभाओं के लिए टूर पर रहते थे। एक दिन दादा जी ने हमें टॉय पायलेट दिया। इससे हमारे मन में भी पायलेट बनने का ख्याल आया। जब हम थोड़े बड़े हुए तो स्टेट लेबल पर क्रिकेट खेला तो मन हुआ कि अब हम क्रिकेटर बनेंगे। जब हम और बड़े हुए और हमने अपने घराने और भारतीय शास्त्रीय संगीत का इतिहास देखा, अपने पूर्वजों को समझा तो हम शास्त्रीय संगीत के लिए प्रेरित हुए। वैसे शास्त्रीय संगीत को हम बचपन से ही सीखते आ रहे थे। हम दोनों ने भी अपनी जोड़ी बनाई और आज इस मुकाम पर आ पहुंचे हैं।

हमारा जन्म सिर्फ शास्त्रीय संगीत के लिए हुआ
एक जवाब में उन्होंने कहा कि अब तो हमें यह लगता है कि हमारा जन्म सिर्फ और सिर्फ शास्त्रीय संगीत के लिए हुआ है। शास्त्रीय संगीत थोड़ा जटिल है, लेकिन जब हम इसे समझते हैं तो हमारे मन और दिमाग दोनों को सुकून देने वाला होता है।

ये रहे उपस्थित
इस अवसर पर फाउंडर चांसलर रमाशंकर सिंह, चांसलर रुचि सिंह चौहान, प्रो. चांसलर डॉ. दौलत सिंह चौहान, वाइस चांसलर प्रो. एसएन खेडकऱ उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन जयंत तोमर ने किया।