
बलिदान दिवस : वीरांगना लक्ष्मीबाई आज भी है करोड़ों लोगों की प्रेरणा, जानिए
ग्वालियर। अपनी अद्भुत वीरता, युद्ध कौशल, साहस और कभी न खत्म होने वाले देश प्रेम के कारण एक साधारण सी बालिका मनु एक कालजयी वीरांगना लक्ष्मीबाई बन गई। देशभक्ती का जज्बा जिसके रंग-रंग में भरा हुआ था और आज भी वह करोड़ों लोगों की प्रेरणा हैं। ऐसी वीरांगना से आज भी राष्ट्र गर्वित एवं पुलकित है। उनकी देश भक्ति की ज्वाला को काल भी बुझा नहीं सकता। रानी लक्ष्मीबाई को शब्दों में बांधा नहीं जा सकता। क्योकि उन्होंने देश के लिए जो बलिदान और कुर्बानी दी है उसका अब तक कोई जवाब नहीं है।
बुधवार से वीरांगना लक्ष्मीबाई का दो दिवसीय बलिदान दिवस शुरू हो गया है। यह शहीद ज्योति झांसी के किले से विक्रम बुंदेला ग्वालियर लेकर पहुंचे। शहर के पड़ाव चौराहे पर मेला आयोजन समिति के अध्यक्ष व पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया ने यह शहीद ज्योति थामी और 20 लोगों को साथ लेकर वीरांगना की समाधि पर पहुंचे। इसके बाद राष्ट्रगान के बाद समाधि स्थल पर दीपदान कर लोगों ने वीरांगना को श्रद्धांजलि अर्पित की। गुरुवार की सुबह 7.45 बजे समाधि स्थल पर पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया व सांसद विवेक शेजवलकर सहित अन्य ने वीरागंना को पुष्पाजंलि अर्पित किए। इसके बाद समाधि स्थल के सामने स्थित मैदान में पवैया सहित अन्य लोग भावंजलि उपवास पर बैठे। ऐसे में हम आपको बता रहे हैं उनसे जुड़ी कुछ यादे।
दो दिन तक अंग्रेजों से लिया लोहा
महारानी लक्ष्मीबाई ने ग्वालियर की धरती पर फिरंगियों से दो दिन तक लोहा लिया। झांसी से यहां आने के बाद ग्वालियर दुर्ग पर रानी अपने अंग रक्षकों के साथ घिर गईं। अंग्रेजों की व्यूह रचना तोड़ते हुए वे किला के पिछले गेट से निकल आईं। युद्ध करते हुए रानी स्वर्ण रेखा नदी तक पहुंच गईं। घायल रानी को अंगरक्षक गंगादास की शाला तक लेकर पहुंचें।
समाधि स्थल-वीरांगना मेला
26 मई 1978 को अधिसूचना जारी कर समाधि स्थल को राज्य संरक्षित स्मारक घोषित किया गया। 1925 में स्मारक स्थल पर प्रतिमा लगाई गई। लक्ष्मीबाई के समाघि स्थल पर जाकर हर वर्ष श्रद्धांजलि दी जाती है। फूलबाग स्थित समाधि स्थल पर 17 सालों से वीरांगना बलिदान मेला आयोजित किया जा रहा है। इसकी शुरुआत साल 2000 में हुई थी। रानी लक्ष्मीबाई के जीवन पर नाटक का मंचन होता है।
यह थे 20 हथियार
गुर्ज, चेस्ट प्लेट, पंजा, छड़ी/गुप्ती/रिवाल्वर, दस्ताना, ढाल, तेगे, हेल्मेट आदि शामिल हैं। महारानी लक्ष्मीबाई से टकराने में दुश्मन को सो बार सोचना पड़ता था। बिजली सी चमक के साथ वह अपने दुश्मनों पर टूट पड़ती थीं। वह हमेशा 20 तरह के हथियार और 10 तरह के कवच हमेशा पहनकर रहती थीं। रानी की खासियत थी कि वह दोनों हाथों से तलवार चलाती थीं। जानकारों के अनुसार शस्त्र व कवच का वजन लगभग &0 किलो तक होता था।
Published on:
18 Jun 2020 12:08 pm
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