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एकल पीठ का आदेश निरस्त, संदीप कुलश्रेष्ठ को फिर से आईआईटीटीएम का डायरेक्टर बनाने का दिया आदेश

हाईकोर्ट की युगल पीठ से कुलश्रेष्ठ को बड़ी राहत एकल पीठ ने कुलश्रेष्ठ की नियुक्त कर सीबीआई जांच के दिए थे आदेश

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एकल पीठ का आदेश निरस्त, संदीप कुलश्रेष्ठ को फिर से आईआईटीटीएम का डायरेक्टर बनाने का दिया आदेश

एकल पीठ का आदेश निरस्त, संदीप कुलश्रेष्ठ को फिर से आईआईटीटीएम का डायरेक्टर बनाने का दिया आदेश

हाईकोर्ट की युगल पीठ ने उस आदेश को निरस्त कर दिया, जिसमें आईटीआईटीटीएम के तत्कालीन डायरेक्टर संदीप कुलश्रेष्ठ की नियुक्त को निरस्त कर सीबीआई जांच के आदेश दिए थे। युगल पीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि एकल पीठ ने अपने अधिकारी क्षेत्र से बाहर जाकर आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 226 के तहत क्षेत्राधिकार न तो बेलगाम है। न ही अनियंत्रित है। बल्कि स्व लगाए गए सीमाओं के अधीन है। संवैधानिक न्यायालयों से अपेक्षा की जाती है कि वे ऐसे क्षेत्राधिकार के उपयोग बचे, जिससे न्यायिक अनुशासन का किसी भी तरह से त्याग न हो। कोर्ट ने संदीप कुलश्रेष्ठ को फिर से आईआईटीटीएम का डायरेक्टर बनाने का आदेश दिया है।

27 अगस्त 2019 को हाईकोर्ट की एकल पीठ ने भारतीय यात्रा पर्यटन संस्थान के डायरेक्टर (आईआईटीटीएम) संदीप कुलश्रेष्ठ की नियुक्ति को निरस्त कर दिया है। कोर्ट ने कुलश्रेष्ठ पर 20 हजार का हर्जाना लगाते हुए नियुक्ति की जांच सीबीआई को सौंप दी है। उन्हें वेतन का वह हिस्सा भी लौटाना पड़ेगा, जो डायरेक्टर और प्रोफेसर के वेतन का अंतर होगा। मनोज प्रताप सिंह यादव ने 2016 में भारतीय यात्रा पर्यटन संस्थान के डायरेक्टर संदीप कुलश्रेष्ठ की नियुक्ति को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ता की ओर से बताया गया था कि संदीप कुलश्रेष्ठ की नियुक्ति फर्जी है। सीबीआई, विश्वविद्यालय थाना पुलिस में शिकायत की थी। विवि पुलिस ने यह कहते हुए जांच करने से इनकार कर दिया कि मामला सीबीआई के पास है, इसलिए पुलिस कार्रवाई नहीं कर सकती है। हाईकोर्ट की एकल पीठ ने बहस के बाद अपना फैसला सुनाया था। कुलश्रेष्ठ की नियुक्त को निरस्त कर दिया। इस आदेश को कुलश्रेष्ठ ने युगल पीठ में चुनौती दी। साथ ही केंद्र शासन ने भी रिट अपील दायर की। दोनों रिट अपील युगल पीठ ने 11 अक्टूबर 2023 को बहस के बाद फैसला सुरक्षित लिया था। सोमवार को इस याचिका में फैसला सुना दिया। युगल पीठ ने एकल पीठ के आदेश को निरस्त कर दिया। इससे संदीप कुलश्रेष्ठ को बड़ी राहत मिल गई।

नियुक्ति के लिए फर्जी अनुभव प्रमाण पत्र लगाए हैं

मनोज प्रताप सिंह का आरोप था कि अनुभव प्रमाण पत्र फर्जी लगाए हैं। उन्हें स्नातकोत्तर में पढ़ाने का अनुभव साढ़े छह साल है, जबकि डायरेक्टर पद के लिए दस साल का अनुभव जरूरी है। माधव कॉलेज में 1991 से 1997 तक एमबीए व एमपीए पढ़ाने का अनुभव बताया गया है, जबकि माधव कॉलेज में 1991 से 1997 के बीच यह कोर्स संचालित नहीं होते थे।