
ग्वालियर@हर्ष दुबे।
दरिया हो या समंदर, शरीर की हड्डियों को पानी में विलीन होने में लंबा अरसा लग जाता है। लेकिन ब्रज में एक जलस्रोत ऐसा है, जिसमें तीन दिन (करीब ७२ घंटे) में अस्थियां पानी में विलीन हो जाती हैं। यह है सोरों स्थित हरि की पौड़ी, जहां पितृ पक्ष में 'मोक्ष' की गंगा बहती है।
उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले में स्थित सोरों सूकर तीर्थ क्षेत्र में भगवन विष्णु के तृतीय अवतार भगवान वराह को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। यहां स्थित कुंड में उन्होंने शरीर त्यागा था और देवी पृथ्वी को इस तीर्थ के माहात्म्य के बारे में बताया था। वराह पुराण के अनुसार, सोरों जी में पिंडदान करने से मृत आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है। पितृ पक्ष में उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात समेत कई प्रदेशों से लाखों श्रद्धालु पूर्वजों की अस्थियां विसर्जित करने सोरों जी पहुंचते हैं।
वराह पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर स्वामी आशुतोष आनंद गिरी कहते हैं, पवित्र स्थल सोरों जी की जर्मनी समेत अन्य देशों के वैज्ञानिकों ने पड़ताल की, लेकिन उन्हें कुछ भी हासिल नहीं हुआ। भगवान वराह का बनाया यह कुंड रहस्यमयी है। यहां उनका वर्षों पुराना चक्र और एशिया का प्राचीन गृद्ध वट भी है। यहीं प्राचीन सीताराम मंदिर भी है, जिसका इतिहास सम्राट पोरस के समय से जोड़ा जाता है।
सोरों में धरती को बचाया
श्री वराह मंदिर के महंत आचार्य नरेश त्रिगुणायत कहते हैं, सोरों में हिरण्याक्ष दैत्य ने पृथ्वी को कैद कर लिया था, तब भगवान विष्णु ने वराह रूप धारण कर हिरण्याक्ष का वध किया और धरती को बचाया था। भगवान वराह ने पृथ्वी को नाक पर रखा है। यहां आज भी भगवान के इस दिव्य स्वरूप का दर्शन करने लोग आते हैं।
तुलसीदास का जन्म भी यहीं हुआ
शोधकर्ता उमेश पाठक के मुताबिक, सोरों में रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास का जन्म हुआ था। उनके जन्मस्थल को लेकर कई तरह की भ्रांतिया हैं, लेकिन अनेक साक्ष्य ऐसे हैं जिनसे ये सिद्ध होता है कि सोरों ही तुलसीदास जी की जन्मस्थली है। तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में सूकरखेत का जिक्र किया है और उनकी शब्दावली इसी क्षेत्र की भाषा से मिलती जुलती है।
पुरोहितों के पास पुरखों की बही
तीर्थपुरोहित रामाधार दुबे ने बताया कि सोरों जी आने वाले तीर्थयात्री अपने पूर्वजों के सैकड़ों वर्ष पुराने नामों को तीर्थ पुरोहितों से सुनते हैं। यहां पुरोहितों के पास बही में यात्रियों के पूर्वजों के नाम हैं। तीर्थयात्री हरि की पौड़ी में पिंडदान कराते हैं, ताकि पूर्वजों की आत्मा को शांति मिल सके।
Published on:
11 Sept 2022 10:01 am
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