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170 परिवारों को जगह बता दी, झोपड़ी डलवा दीं, बारिश में कैसे कटेंगे दिन

-बागचा के विस्थापितों की बढ़ गईं मुश्किलें-विभाग अभी नोटिफिकेशन पर ही अटका-नक्शा बने बगैर नहीं मिलेगा राजस्व ग्राम का दर्जा-दर्जा मिलने से पहले सुविधाओं का मिलना मुश्किल

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170 परिवारों को जगह बता दी, झोपड़ी डलवा दीं, बारिश में कैसे कटेंगे दिन

170 परिवारों को जगह बता दी, झोपड़ी डलवा दीं, बारिश में कैसे कटेंगे दिन

श्योपुर। कूनो से विस्थापित हुए बागचा गांव के 170 परिवारों को रामबाड़ी और चकबमूल्या पंचायत के बीच में जगह दी गई है। यहां लोगों ने अपनी झोपड़ी भी बना लीं। कुछ परिवारों ने रहना भी शुरू कर दिया लेकिन सुविधाओं के अभाव में इनके दिन मुश्किल से कट रहे हैं। सड़क सहित अन्य इंतजाम न होने से बारिश की शुरुआत में लोगों को अपनी झोपडिय़ों में रहना मुश्किल हो रहा है। मानसून आने पर नई बस रही बस्ती में और ज्यादा मुश्किलें बढ़ेंगीं।


दरअसल, कूनो नेशनल पार्क के जंगल में बसे 25 गांव खाली कराए गए हैं, इनमें से बागचा सबसे आखिर में विस्थापित हुआ है। चीता प्रोजेक्ट को गति देने के लिए हो रहे इस विस्थापन की प्रक्रिया को पूरा कर दिया गया है। कूनो के अधिकारियों ने केन्द्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव को ग्रामीणों को सभी सुविधाएं देने की रिपोर्ट दे दी है। जबकि धरातल पर एक भी सुविधा अभी नहीं पहुंची है। गांव के 223 परिवारों को विस्थापित करने के लिए 30 करोड़ रुपए का बजट बताया गया था। इसमें से 53 परिवारों को 15 लाख रुपए एकमुश्त रकम दी गई। जबकि 170 परिवारों ने जमीन और घर बनाने का विकल्प चुना था। इस विकल्प का चुनने के बाद सभी को ढोढर रोड पर नहर के किनारे जगह दी गई थी। परिवारों को किश्तों में तीन लाख रुपए घर बनाने के लिए दिए जाने हैं और दो हेक्टेयर कृषि भूमि देने का वादा किया गया है।


यहां बस रहा है नया बागचा
बागचा के विस्थापित परिवारों को सामान्य वन मंडल के कक्ष क्रमांक 192-193 में रामबाड़ी एवं चकबमूलिया के बीच बसाया जा रहा है। 400 हेक्टेयर जगह इन ग्रामीणों के लिए चिन्हित की गई है। गांव को दो भाग में बांट दिया गया है। 72 परिवार नहर के बिलकुल किनारे पर बस रहे हैं। जबकि 100 परिवार नहर के दूसरी ओर करीब एक किलोमीटर दूर बसाए जा रहे हैं।


अब तक 1545 परिवारों का विस्थापन
बागचा के विस्थापन के साथ ही अब कूनो से सभी 25 गांव विस्थापित हो चुके हैं। 24 गांव के 1545 परिवारों को पहले ही विस्थापित किया जा चुका है। अब बागचा के 170 परिवार नए सिरे से बस रहे हैं।


यह कहते हैं ग्रामीण
-जंगल में अपना पूरा जीवन बिता चुके कमजी ग्रासिया का कहना है कि नई जगह पर अच्छा नहीं लग रहा। यहां न तो हरियाली है और न ही बैठने के लिए जगह बन पाई है।
-लालाराम ने बताया कि बारिश में अब यहां मुश्किलें बढ़ेंंगीं। नहर किनारे ढाल होने से पानी सीधा झोपडिय़ों की तरफ आएगा। बारिश ज्यादा हुई तो हमें मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।
-रामचरण आदिवासी ने बताया कि जंगल से बाहर आने के बाद तो हम सरकार की दया पर ही निर्भर हैं। हमारे हक की जमीन के कागज अभी तक नहीं मिले। मजदूरी का भी कोई ठिकाना नहीं है।


वर्सन
-कूनो नेशनल पार्क से विस्थापित बागचा गांव के रहवासियों की सुविधा के लिए हम सभी प्रयास कर रहे हैं। नक्शा बनाया जा रहा है, इसके फायनल होते ही बहुत सी औपचारिकताएं अपने आप पूरी हो जाएंगीं। जमीन तो आरक्षित हो ही गई है।
पीके वर्मा डीएफओ, कूनो वनमंडल