मप्र हाइकोर्ट ग्वालियर के अधिवक्ता अवधेश सिंह भदौरिया की ओर से हाइकोर्ट में जनहित याचिका प्रस्तुत की गई थी। इसमें बताया गया कि मध्यप्रदेश का ग्वालियर-चंबल संभाग दशकों से दस्यु प्रभावित क्षेत्र रहा है जिसके चलते न केवल इस क्षेत्र की कानून व्यवस्था जीर्ण-शीर्ण हुई बल्कि डकैतों के प्रभाव के चलते आर्थिक स्थिति पर भी गंभीर विपरीत प्रभाव पड़ा है। डकैतों के उन्मूलन तथा कारगर दंड, शीघ्र विचारण, डकैती से अर्जित संपत्तियों को ध्वस्त करने और डकैतों के संगठित और असंगठित गिरोह को समाप्त करने के लिए 1981 में मप्र डकैती और व्यपहरण प्रभावित क्षेत्र अधिनियम लागू किया गया, जिसमें ग्वालियर-चंबल संभाग के सात जिले मुरैना, भिंड, ग्वालियर, श्योपुर, दतिया, शिवपुरी तथा गुना को सम्मिलित किया गया।
2000 से 2006 तक ग्वालियर-चंबल संभाग से करीब-करीब डकैतों का सफाया हो गया था लेकिन आज पुन: स्थिति जस की तस निर्मित हो गई है। ग्वालियर-चंबल संभाग की भूमि डकैतों और अपहरणकर्ताओं के लिए आरामदायक बन चुकी है, संभाग में औसतन हर दिन करीब 40-50 हत्या, हत्या के प्रयास, लूट, डकैती तथा अपहरण की वारदातें होती हैं। इसमें एमपीडीपीके एक्ट डकैती तथा डकैतों पर अंकुश लगाने में सफल नहीं हो पा रहा है क्योंकि सरकारें उक्त दिशा में पुलिस और प्रशासनिक तौर पर डकैतों के विरूद्ध कार्यवाही करने में सक्षम एवं पर्याप्त कदम उठाने में पूर्ण रूप से विफल रहे हैं। नतीजतन वर्तमान में ग्वालियर-चंबल संभाग की कानून व्यवस्था घोर निराशाजनक है। याचिका में कहा गया कि विधायिका द्वारा मप्र डकैती और व्यपहरण प्रभावित क्षेत्र अधिनियम (एमपीडीपीके एक्ट) लागू कर देने मात्र से ग्वालियर-चंबल संभाग में अपहरण का उद्योग बंद नहीं हो सकता बल्कि उसके क्रियान्यवयन के लिए पुलिस एवं प्रशासनिक स्तर पर लगातार मैदानी कार्यवाही सक्रिय रहना जरूरी है जो कि वर्तमान में दिखाई नहीं देता।
ग्वालियर-चंबल संभाग की सीमा उत्तर प्रदेश के जिला इटावा, जालौन, झांसी, आगरा तथा राजस्थान के जिला धौलपुर, भरतपुर, कोटा आदि के बीहड़ी इलाकों से मिलती है, जो कि अपराधियों, अपहरणकर्ताओं एवं डकैतों के लिए सुगम एवं सुलभ माहौल है। गंभीर अपराध अथवा अपहरण की वारदात करने के बाद अपहरणकर्ता यथाशीघ्र घटना स्थल के आसपास का क्षेत्र छोडकऱ राजस्थान अथवा उत्तरप्रदेश की सीमाओं में चले जाते हैं जहां की पुलिस से मध्यप्रदेश पुलिस का प्रभावी समन्वय नहीं होने के चलते अपराधियों के विरूद्ध तुरंत प्रभावी कार्यवाही नहीं हो पाती।
कमोबेश यही स्थिति राजस्थान एवं उत्तरप्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों की है इसी कारण अपहरण उद्योग पर पूर्ण विराम नहीं लग पा रहा, जिससे न केवल ग्वालियर-चंबल संभाग की कानून व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है बल्कि आर्थिक रूप से भी उक्त क्षेत्र काफी पिछड़ गया है। कर्मचारियों, उद्यमियों आदि के अपहरण होने से कोई भी उद्यमी ग्वालियर-चंबल संभाग में उद्योग स्थापित करने में हिचकता है। ग्वालियर-चंबल संभाग, राजस्थान एवं उत्तरप्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्र के राज्यों की सीमाओं का अपराधी अनुचित लाभ न उठा पाएं और उनके विरूद्ध समय रहते प्रभावी कार्यवाही हो सके तथा अपह्वत को यथाशीघ्र मुक्त कराया जा सके।
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इसके लिए तीनों राज्यों की पुलिस एवं प्रशासनिक स्तर पर प्रभावी तालमेल होना आवश्यक है ताकि अपहरण या डकैती या अन्य गंभीर अपराध की वारदात के बाद पुलिस कार्यवाही के लिए किसी भी प्रदेश की सीमा बाधित न हो और अविलंब कार्यवाही हो सके, इसके लिए तीनों राज्यों की पुलिस को मिलकर एक उच्च स्तरीय स्थायी टास्क फोर्स गठित होना आवश्यक है। अधिवक्ता अवधेश सिंह की ओर से न्यायालय में तर्क दिया गया कि जब तक तीनों राज्यों की पुलिस संयुक्त रूप से एसआइटी का गठन कर कार्यवाही नहीं करेंगे तब तक अपराधों पर अंकुश लगना संभव नहीं है। न्यायालय ने उक्त तर्कों से सहमत होते हुए आदेश दिया कि ग्वालियर-चंबल संभाग में अपराधों की रोकथाम के लिए तीनों प्रदेश की सरकारें संयुक्त पुलिस दल का गठन करें।
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साथ ही मप्र शासन को आदेश दिया है कि ग्वालियर-चंबल संभाग के हाइवे की सुरक्षा के लिए गठित की गई पुलिस पेट्रोलिंग की निगरानी शासन सतत रूप से करे, ताकि पुलिस पेट्रोलिंग सक्रिय रूप से कार्य करें, पुलिस पेट्रोलिंग में न केवल पुलिस बल को बढ़ाया जाए बल्कि सभी साधनों से युक्त भी किया जाए। तीनों राज्य इसके लिए तत्काल कार्यवाही करते हुए 20 मार्च 2019 तक न्यायालय में पालन प्रतिवेदन प्रस्तुत करें।