फिर देसी अंदाज पर भरोसा, बीटी से मोहभंग
-दो दशक पहले करीब तीन लाख हेक्टैयर में होती थी देसी कपास की खेती
-आहिस्ता-आहिस्ता कपास उत्पादन के क्षेत्र में बीटी कॉटन ने देश में जमा लिया कब्जा
हनुमानगढ़. जिले में देसी कपास की खेती पर किसानों का भरोसा फिर से लौटने लगा है। किसान देसी कपास के बीज की मांग करने लगे हैं। परंतु हकीकत यह है कि अब राजस्थान राज्य बीज निगम के पास बीज का एक दाना भी नहीं बचा है। इस वजह से किसानों को देसी कपास के बीज नहीं मिल पा रहे हैं। जिले की स्थिति यह है कि करीब दो दशक पहले तक देसी कपास की खेती करीब तीन लाख हेक्टैयर तक में हो रही थी। बड़े पैमाने पर इसकी खेती से उत्पादन भी खूब हो रहा था। लेकिन इसमें गुलाबी सुंडी सहित अन्य कीट का प्रकोप आने के बाद किसान परेशान हो गए। इसी बीच सरकार ने बीटी कॉटन बीज को लेकर स्वीकृति जारी कर दी। शुरुआती दौर में बीटी कॉटन व अमेरिकन कॉटन में गुलाबी सुंडी सहित अन्य कीट का प्रकोप नहीं था। उत्पादन भी देसी कपास जितना हो रहा था। इसलिए किसानों ने देसी कपास को भूलकर बीटी कॉटन पर भरोसा करना शुरू कर दिया। आहिस्ते-आहिस्ते देसी कपास की खेती नामात्र रह गई। जबकि बीटी कॉटन का क्षेत्र लगातार बढ़ता गया। परंतु बीते दो बरसों से जिले में बीटी कॉटन में गुलाबी सुंडी का भयंकर प्रकोप देखने को मिल रहा है। उपज घटने की वजह से किसानों को बड़ा नुकसान हो रहा है। इसलिए किसानों का रुझान फिर से देसी कपास की खेती की तरफ बढऩे लगा है। लेकिन मजबूरी यह है कि किसान इसकी बिजाई नहीं कर पा रहे हैं। कृषि विभाग के अधिकारी अब प्राइवेट बीज कंपनियों से संपर्क करके देसी कपास के बीज का जुगाड़ करने में लगे हुए हैं। ताकि देसी कपास की बिजाई क्षेत्र में की जा सके। कृषि अधिकारियों की मानें तो इस बार बीटी कॉटन की बिजाई के क्षेत्र में कमी आएगी। जबकि देसी कपास की बिजाई बढ़ेगी। कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक रमेशचंद्र बराला के अनुसार बड़ी संख्या में जिले के किसान देसी कपास के बीज की मांग कर रहे हैं। इससे मुख्यालय को अवगत करवा दिया गया है। गत वर्ष भी किसानों ने इसकी मांग की थी। लेकिन बीज उपलब्ध नहीं होने से देसी कपास की बिजाई बहुत कम क्षेत्र में हो पाई।
बीज भी नहीं संरक्षित
जानकारी के अनुसार सरकार की ओर से संचालित केंद्रीय व राज्य बीज निगम के पास खरीफ व रबी फसलों के विभिन्न तरह के बीज को संरक्षित रखा जाता है। लेकिन देसी कपास का बीज यहां भी संरक्षित नहीं है। बताया जा रहा है कि करीब दो दशक से किसानों ने इसकी मांग नहीं की। इसलिए बीज निगम ने इसके बीज संरक्षित नहीं किए। अब जब बीटी कॉटन में गुलाबी सुंडी का प्रकोप तेजी से बढ़ा है तो लोग फिर से देसी कपास की तरफ लौटने को आगे आ रहे हैं। लेकिन देसी कपास के बीज उपलब्ध नहीं होने से अब किसानों के हाथ खाली हैं।
इसकी खेती महंगी
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार बीटी कॉटन की खेती देसी कपास की तुलना में काफी महंगी है। बीटी बीज के रेट अधिक हैं। इसमें खाद-बीज भी अधिक लगता है। जबकि कीट प्रकोप बीटी नरमा में भी आने लगा है। जबकि देसी कपास की खेती में खर्च आता है। उत्पादन बीटी के बराबर ही आता है। इस वजह से किसानों का मन अब फिर से देसी कपास की तरफ आने लगा है। गत वर्ष की बात करें तो बीटी कॉटन में करीब 70 प्रतिशत तक खराबा हुआ था। इसलिए उपज नामात्र रह गई। जबकि देसी कपास में अच्छा उत्पादन हुआ था। इस वजह से किसान अब वापस देसी के प्रति विश्वास जता रहे हैं। गत वर्ष भी देसी कपास के बीज की मांग खूब रही थी। लेकिन सरकार किसानों को इसका बीज उपलब्ध करवाने में नाकाम रही।
बीटी कॉटन क्या है
बीटी कपास अनुवांशकी परिवर्तित कपास की फसल है। इसमें बेसिलस थ्यूरेनजिनेसिस बैक्टीरिया के एक या दो जीन फसल के बीज में अनुवांशकीय अभियांत्रिकीय तकनीक से बीज में डाल दिए जाते हैं। जो पौधे के अंदर क्रिस्टल प्रोटीन उत्पन्न करते हैं। इससे विषैला पदार्थ उत्पन्न होकर कीट को नष्ट कर देता है। बीटी कपास सर्वप्रथम मॉनसेंटो समूह की ओर से बोलगार्ड कपास के नाम से 1996 में अमेरिका में प्रचलन में लाई गई थी। बाद में वर्ष 2006 में भारत में भी समझौते के तहत इसकी खेती शुरू कर दी गई। धीरे-धीरे बीटी कपास ने देश में प्रचलित देसी कपास पर पूरी तरह से कब्जा जमा लिया।
गुलाबी सुंडी नियंत्रण को लेकर आज होगी कार्यशाला
जिले में गत बरसों में नरमा-कपास में गुलाबी सुंडी का प्रकोप आने के बाद से कृषि विभाग के अधिकारी इसकी रोकथाम को लेकर प्रयासरत हैं। इसी संदर्भ में शनिवार को जंक्शन के अग्रसैन भवन में कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है। इसमें जिले के प्रगतिशील किसान, बीज विक्रेता तथा कृषि विभाग के अधिकारी शामिल होंगे। कार्यशाला में कलक्टर कानाराम मुख्य अतिथि होंगे। कृषि विभाग हनुमानगढ़ के संयुक्त निदेशक रमेशचंद्र बराला ने इसकी जानकारी दी। सुबह ग्यारह से दो बजे तक कार्यशाला चलेगी। इसमें बीटी कॉटन में गुलाबी सुंडी का प्रकोप आने पर इसका नियंत्रण कैसे किया जाए, इसे लेकर सभी को जागरूक किया जाएगा।
…..फैक्ट फाइल….
-हनुमानगढ़ जिले में गत वर्ष करीब 2 लाख 8 हजार हेक्टैयर में बीटी नरमा की बिजाई हुई थी।
-गत वर्ष जिले में बीटी नरमा में 60-70 प्रतिशत तक नुकसान हुआ था।
-देसी कपास में गत वर्ष अच्छा उत्पादन हुआ, इस वजह से किसान इसकी खेती की तरफ वापस लौट रहे हैं।
-आगामी खरीफ सीजन में 15 अप्रैल से 15 मई तक कपास बिजाई पर रहेगा जोर।
…….वर्जन…..
जिले में देसी कपास की खेती की तरफ किसानों का रुझान बढ़ रहा है। लेकिन बीज उपलब्ध नहीं होने से किसान इसकी खेती नहीं कर पा रहे हैं। बीज की मांग को लेकर मुख्यालय को अवगत करवा दिया गया है। गत बरसों में बीटी कॉटन में बड़े स्तर पर नुकसान होने से किसानों का रुझान बीटी की तरफ से घट रहा है।
-बीआर बाकोलिया, सहायक निदेशक, कृषि विभाग हनुमानगढ़