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गांव के पांव- गठन से अब तक निर्विरोध चुने जाते है बूंदड़ा ग्राम पंचायत के पंच-सरपंच

एक जाजम पर बैठकर ग्राम विकास का हर निर्णय लेते हैं ग्रामीण

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गांव के पांव- गठन से अब तक निर्विरोध चुने जाते है बूंदड़ा ग्राम पंचायत के पंच-सरपंच

गांव के पांव- गठन से अब तक निर्विरोध चुने जाते है बूंदड़ा ग्राम पंचायत के पंच-सरपंच

ग्राम : बूंदड़ा
आबादी : 1000
तहसील : हरदा
जिला : हरदा
गुरुदत्त राजवैद्य, हरदा। एकमत होकर लिया गया कोई भी निर्णय निश्चित ही बेहतर परिणाम लाता है। इससे आगे बढऩे की गति सामान्य से कई गुना बढ़ जाती है। जिले की ग्राम पंचायत बूंदड़ा ने 25 साल में यह करके भी दिखाया। वर्ष 1995 में गठन से अब तक ग्राम पंचायत में पंच और सरपंच निर्विरोध चुने जाते रहे हैं। इसका परिणाम यह निकला कि शासन से मिलने वाली लाखों की प्रोत्साहन राशि विकास कार्यों पर खर्च होने लगी। एकजुटता से लिए निर्णयों की बदौलत ही यह गांव 2007 में ओडीएफ हो गया था। यानि तब ही यहां के हर घर में शौचालय बन चुका था। ग्रामीण विकास की बात करें तो यहां अधिकतर नालियां अंडरग्राउंड हैं। चैंबर्स की सफाई होने से सड़क पर निकासी का पानी नहीं बहता। वर्ष 2011 में आदर्श पंचायत का खिताब ले चुकी यह ग्राम पंचायत इसके अगले ही साल जिले की पहली इ-पंचायत बनी। यहां का लेखा-जोखा कम्प्यूटर पर होने लगा। समग्र आइडी बनने का काम भी यहां सबसे पहले पूर्ण हुआ। यहां की एक विशेष बात यह भी है कि विकास कार्यों के लिए शासन से मिलने वाली राशि यदि कम पड़े तो ग्रामीण आपस में जुटाते हैं, लेकिन कार्य गुणवत्तापूर्ण ही कराया जाता है। आपसी विवाद की स्थिति में दोनों पक्षों को बैठाकर समझाइश से निपटारा किया जाता है। थाना और कोर्ट तक जाने से बचा जाता है।
समरसता भोज में उमड़ता है पूरा गांव
पूर्व जनपद सदस्य संजय बिजघावने बताते हैं कि ग्राम पंचायत गठन के बाद नरेंद्र पालीवाल निर्विरोध पहले सरपंच बने थे। उनके बाद निर्मला पालीवाल, गोकुल प्रसाद गुर्जर, सालगराम गोनकर भी एकराय से सरपंच बने। मौजूदा सरपंच नारायण प्रसाद उइके भी निर्विरोध चुने गए थे। बिजघावने ने बताया कि गणेश उत्सव व दुर्गा उत्सव के दौरान गांव में एक ही स्थान पर प्रतिमा विराजित होती हैं। दुर्गा उत्सव के अंतिम दिन कन्या भोज में सामाजिक समरसता की झलक दिखती है। इस दौरान हर वर्ग व समुदाय के लोग एक साथ बैठकर भोजन करते हैं।
यह कमियां हैं गांव में
- सार्वजनिक शौचालय नहीं होने से बाहर से आने वाले मजदूर व हार्वेस्टर संचालकों को असुविधा होती है।
- गांव में उप स्वास्थ्य केंद्र नहीं होने से बारिश में बालागांव जाने में परेशानी होती है।
- यात्री प्रतिक्षालय नहीं होने से ग्रामीणों को बारिश व धूप में खड़े रहकर बसों का इंतजार करना पड़ता है।