
प्रसव पीड़ा से कराहती महिला पहाड़ चढ़कर पहुंची अस्पताल, बच्चे को जन्म देने के बाद हालत हुई ख़राब फिर...
रवि सिन्हा: झारखंड सरकार 108 नंबर पर काॅल करने पर कुछ ही मिनटों में सुदूरवर्ती गांवों में एंबुलेंस की सुविधा उपलब्ध कराने का दावा करती है, लेकिन हकीकत इसके विपरीत है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं और एंबुलेंस के अभाव के मरीज और गर्भवती महिलाएं अब भी कई मुश्किलों का सामना कर अस्पताल पहुंचने के लिए विवश है। ताजा मामला हजारीबाग जिले के इचाक प्रखंड के पुरपनिया गांव से सामने आया है। गांव के राजकुमार बस्के की पत्नी को प्रसव पीड़ा शुरू हुई तो...
खटिया पर लेकर निकले...
परिजनों ने बताया कि राजकुमार बास्के की गर्भवती पत्नी सावित्री देवी को मंगलवार को दोपहर में दर्द हुआ। सहिया पुनिया देवी ने उन्हें तत्काल अस्पताल ले जाने की सलाह दी, जिसके बाद गांव के रमेश मांझी, राजकुमार बास्के, सुरेंद्र मांझी, बाबूलाल मांझी, ने खटिया की व्यवस्था की। इसके बाद डाडीघघार से महिया घुमाट तक गर्भवती को लाया गया। लेकिन पहाड़ी पर चढ़ाई होने की वजह से सभी थक गए जिसके बाद गर्भवती महिला खाट से उतर गई। और वह खुद ही...
खुद ही चल पड़ी
पहाड़ चढ़ते वक्त परिजनों की सांस फूलने लगी सावित्री से यह देखा नहीं गया। इसके बाद वह खटिया से उतर गई। दर्द से कराहती सावित्री ने पैदल चलना शुरू किया। वह पहाड़ पर लगभग चार किलोमीटर पैदल चली और परिजनों के साथ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंची। यहां आने के बाद...
बच्चे को दिया जन्म फिर...
सावित्री ने स्वास्थ्य केंद्र में बड़े ऑपरेशन से बच्चे को जन्म दिया। डॉक्टरों ने उसकी गंभीर हालत को देखते हुए सदर अस्पताल रेफर कर दिया।
अस्पताल पहुंचने में लगे तीन घंटे
बताया गया है कि घर से निकलकर अस्पताल पहुंचने में गर्भवती महिला को तीन घंटे से ज्यादा का वक्त लगा और इस दौरान महिला पीड़ा से कराहती रही, लेकिन गनीमत यह रही कि सहिया दीदी और गांव की कुछ महिलाओं ने साथ नहीं छोड़ा। वह हर पल सावित्री की हिम्मत बंधाती रही।
विकास की सच्ची तस्वीर दिखातें सुदूर इलाके!
परिजनों का कहना है कि पुनपनिया गांव डाडीघाघर पंचायत में पड़ता है और आजादी के इतने वर्षाें बाद भी अब तक रास्ता नहीं बन पाया है और लोग प्रतिदिन पगडंडी पर चलने को मजबूर है। इसी इलाके में पुरपनिया के अलावा गरडीह, सालूजाम, धरधरवा गांव जाने के लिए भी सड़कें नहीं हैं। पहाड़ी,पगडंडी पर चलना गांवों के लोगों की मजबूरी है। जाहिर है किसी के बीमार पड़ने पर दर्द छलक जाता है। रमेश हेंब्रम बताते हैं कि इन गांवों के लोगों को प्रखंड मुख्यालय या शहर आने के लिए कई किलोमीटर पैदल चलना होता है। इसी वजह से विकास की मुख्य धारा में शामिल होने से लोग वंचित है। रोजगार के अभाव में गांवों के युवा पलायन कर गए है। रमेश कहते हैं कि चुनाव का शोर है और सरकार तथा सरकारी तंत्र के दावे तमाम हैं। पर दूरदूराज के इलाके में जाइए, तो झारखंड की सच तस्वीर दिखाई पड़ जाएगी।
Published on:
28 Aug 2019 05:43 pm
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