इस संबंध में जारी परिपत्र में स्वास्थ्य विभाग ने सभी ultrasound scanning centers और अस्पतालों को स्कैनिंग कक्ष के बाहर किसी भी अटेंडेंट को अंदर आने की अनुमति नहीं है संदेश वाले बोर्ड लगाने के निर्देश दिए हैं। सभी स्कैनिंग केंद्रों को नए निर्देशों का सख्ती से पालन करने के निर्देश दिए गए हैं। उल्लंघन के मामलों में सख्त कार्रवाई होगी।
मण्ड्या जिले के पांडवपुर में स्वास्थ्य विभाग के स्टाफ क्वार्टर में चलाए जा रहे female foeticide racket के खुलासे के मद्देनजर स्वास्थ्य विभाग ने यह निर्णय लिया है। PCPNDT Task Force के प्रमुख और स्वास्थ्य आयुक्त रणदीप डी. ने बताया कि निरीक्षण के दौरान स्कैनिंग केंद्रों पर कई उल्लंघन देखे गए हैं। परिपत्र का उद्देश्य गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (पीसीपीएनडीटी) अधिनियम, 1994 को प्रभावी ढंग से लागू करना है। हाल ही में पीसीपीएनडीटी कार्यशाला में कई radiologist और स्त्री रोग विशेषज्ञों ने चिंता जताई कि थी कि गर्भवती महिला के साथ परिजन अल्ट्रासोनोग्राफी कक्ष में जाते हैं और अल्ट्रासाउंड प्रक्रिया का वीडियो बनाते हैं या तस्वीरें लेते हैं। उन्होंने यह भी चिंता व्यक्त की थी कि रिकॉर्ड किए गए video का उपयोग भ्रूण के लिंग की पहचान करने के लिए किया जाता है। यह धारा 5, उपधारा (2) के तहत पीसीपीएनडीटी अधिनियम का उल्लंघन है।
नया चलन चिंताजनक राज्य पीसीपीएनडीटी के नोडल अधिकारी विवेक दोराई ने कहा कि राज्य में एक नया चलन उभर रहा है, जिसमें भ्रूण का लिंग निर्धारित करने के उद्देश्य से अल्ट्रासाउंड प्रक्रिया के वीडियो बनाए जाते हैं। विदेश में रहने वाले अपने दोस्तों या रिश्तेदारों के साथ साझा कर लिंग निर्धारित करते हैं। उन्होंने कहा कि अल्ट्रासाउंड कक्ष में एक अतिरिक्त मॉनिटर होता है, जो गर्भवती महिलाओं को अल्ट्रासाउंड प्रक्रिया देखने में सक्षम बनाता है। कभी-कभी, रेडियोलॉजिस्ट, बिना कुछ कहे या कोई इशारा किए, लिंग का संकेत देने के लिए भ्रूण के निजी अंगों पर इशारा कर सकते हैं। इसलिए पीसीपीएनडीटी अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए अल्ट्रासाउंड कक्ष में अतिरिक्त मॉनिटर का प्रदर्शन वर्जित है।