विश्व स्तर पर चार उम्मीदवार कंपनियां ऐसी हें जो 2020 के अंत तक या 2021 के शुरुआती कुछ महीनों में एक सुरक्षित अनुमोदित (अप्रूव्ड) और सार्वजनिक उपयोग के लिए पूरी तरह से तैयार वैक्सीन देने की दौड़ में सबसे आगे हैं। वहीं भागीदारी के माध्यम से भारत में भी दो कंपनियां ऑक्सफोर्ड का वायरल वेक्टर वैक्सीन और नोवावैक्स की प्रोटीन सब-यूनिट वैक्सीन पर तेजी से काम कर रही हैं। बर्नस्टीन रिपोर्ट में स्पष्ट तौर से कहा गया है कि इन दोनों वैक्सीन की मौजूदा क्षमताओं और उन्हें अप्रूव्ड करने कासमय, वायरस से लडऩे की क्षमता और टीके की कीमत के आधार पर कोई एक या संभवत: दोनों वैक्सीन कंपनियों को आने वाले कुछ महीनों में जबरदस्त मुनाफा दे सकती हैं।
शुरुआती चरणों में सफल परीक्षण
वहीं बर्नस्टीन रिपोर्ट में दोनों कंपनियों के वैक्सीन के पहले और दूसरे चरण के परीक्षणों के डेटा के आधार पर दोनों कंपनियों को vaccine की सुरक्षा और वायरस के खिलाफ इम्यूनिटी विकसित करने में भी सफलता मिली है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जिस तरह से चीजें अब दिख रही हैं, दोनों टीकों की दो खुराक 21 से 28 दिनों में वायरस के खिलाफ इम्यूनिटी (90 to 95% effective) विकसित करने लगेगी। वॉलस्ट्रीट जैसे प्रतिष्ठित संस्थान की यह रिपोर्ट भारत के वैश्विक रूप से वैक्सीन देने की क्षमता के विषय में उम्मीदें जगाती है। रिपोर्ट के अनुसार, सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया 2021 में 60 करोड़ (600 मिलियन) खुराक और 2022 में करीब 100 करोड़ (1 बिलियन) खुराक की आपूर्ति कर सकती है जिसमें से 40 से 50 करोड़ (400 से 500 मिलियन) खुराक 2021 तक अकेले भारत में उपयोग हो सकती है। रिपोर्ट का अनुमान है कि सरकारी और निजी बाजार के बीच वैक्सीन का क्रमश: 55:45 के अनुपात में भागीदारी होगी।
ये देसी कंपनियां भी बना रही वैक्सीन
सीरम इंस्टीट्यूट ने कहा है कि वह अपनी वैक्सीन की कीमत 3 डॉलर प्रति खुराक रखेगी। लेकिन सीरम इंस्टीट्यूट के अलावा कम से कम 3 कंपनियां और हैं जो भारत में वैक्सीन बनाने में जुटी हुई हैं। इन भारतीय फार्मा कंपनियों में ज़ायडस, भारत बायोटेक और बायोलॉजिकल ई को सूचीबद्ध किया गया है। ये तीनों कंपनियां अपनी स्वयं की वैक्सीन पर काम कर रही हैं और वर्तमान में परीक्षण के चरण 1 और 2 में हैं। भारत बायोटेक, बायोलॉजिकल ई और कुछ छोटे खिलाडियों के बीच, भारत हर साल लगभग 2.3 बिलियन विभिन्न वैक्सीन की खुराक का उत्पादन करता है। सीरम इंस्टीट्यूट, ज़ायडस, भारत बायोटेक और बायोलॉजिकल ई समेत कुछ अन्य छोटी कंपनियों के दम पर भारत सालाना करीब 200 से 300 करोड़ (2-3 बिलियन) अलग-अलग वैक्सीन और खुराक का उत्पादन करता है। वहीं सीरम अकेले 150 करोड़ (1.5 बिलियन) खुराक क्षमता वाले टीकों का विश्व स्तर पर सबसे बड़ा निर्माता है। वैश्विक स्तर पर हर तीन में से दो बच्चों को सीरम इंस्टीट्यूट द्वारा निर्मित वैक्सीन या खुराक मिलती है। बर्नस्टीन के अनुसार, भारत में कुल वैक्सीन बाजार का अनुमान वित्त वर्ष 2021-2022 में 600 करोड़ (6 बिलियन डॉलर) का होने की उम्मीद है।
आसान नहीं कीमत तय करना
न्यूयॉर्क में एनवाईयू लैंगोन हेल्थ में बायोएथिक्स के प्रोफेसर आर्थर एल. कैपलान का कहना है कि किसी भी संभावित सफल कोरोना वैक्सीन की कीमत तयकर पाना आसान नहीं होगा। खासकर तब जब यह अरबों डॉलर का परिणाम हो और लोगों की जान बचा सकती हो। लेकिन उन्हें उम्मीद है कि कीमत इतनी महंगी नहीं होंगी कि इसे आम आदमी खरीद ही न पाए क्योंकि सीमित पहुंच के चलते वैक्सीन का खर्च तक निकालना मुश्किल हो जाएगा। उनका कहना है कि अगर इसे मानव कल्याण के लिए उपलब्ध कराया जाएगा तब तो यह सस्ती होगी लेकिन अगर कंपनियों ने डिमांड को देखते हुए मुनाफा कमाने की सोची तो आम आदमी के लिए वैक्सीन का सपना बहुत महंगा हो सकता है।