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CORONA : अमरीका ने ढ़ूंढ लिया कोरोना का इलाज, 11 दिन में स्वस्थ हो रहे मरीज

अमरीका ने कोरोना वायरस के संक्रमितों का इलाज ढ़ूंढ लिया है। इस दवा के प्रयोग से गंभीर संक्रमितों का 11 दिन में इलाज संभव हो सकेगा। अमरीका की फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने इस दवा को आधिकारिक मंजूर दे दी है।

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वॉशिंगटन. कोरोना संक्रमितों के इलाज में रेमडेसिविर दवा के प्रयोग को लेकर अमरीका की फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने आधिकारिक मंजूर दे दी है। यह फैसला राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के साथ व्हाइट हाउस में बैठक के बाद लिया गया। इसका संक्रमितों पर आपातस्थिति में प्रयोग किया जा सकेगा। रेमडेसिविर को मंजूरी मिलने के बाद डब्ल्यूएचओ ने 'द लैंसेट' में प्रकाशित उस स्टडी के अंशों को अपनी वेबसाइट से हटा दिया जिसमें बताया गया था कि यह प्रभावी दवा नहीं है।

वॉल स्ट्रीट पर भी असर
ट्रंप के स्वास्थ्य सलाहकार व एनआइएआइडी राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान के एंथनी फाउसी ने बताया कि यह दवा गंभीर रूप से बीमार कोरोना वायरस के मरीजों के इलाज में कारगर होगी। इसका सीधा असर वॉल स्ट्रीट पर देखा गया। ड्रग निर्माता कंपनी गिलिएड साइंसेज के स्टॉक बुधवार को नई ऊंचाइयों पर दिखे। लेकिन एक सप्ताह पहले ही विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक अन्य स्टडी की रिपोर्ट जारी की थी, इसके बाद कंपनी के शेयर नीचे आ गिरे थे।
दवा की उपलब्धता के लिए उत्पादन बढ़ाएंगे
दवा बनाने वाली कंपनी गिलेड साइंसेज के चीफ एग्जिक्यूटिव डैनियल ओडे ने कहा कि कंपनी मरीजों की मदद के लिए 15 लाख बॉटल दान में देगी, जो एक लाख 40 हजार मरीजों के इलाज के लिए प्रर्याप्त होगी। दवा की उपलब्धता पर कहा कि कंपनी फार्मास्यूटिकल व केमिकल निर्माताओं के संघ के साथ काम करती रही है, बड़ी मात्रा में उत्पादन के लिए उनका सहयोग लेगी।

इन दिक्कतों पर भी ध्यान जरूरी
अमरीका के इमरजेंसी यूज ऑथराइजेशन ने बताया कि इस दवा से लिवर में एंजाइम के बढऩे, लिवर की कोशिकाएं क्षतिग्रस्त होने, लो ब्लड प्रेशर, चक्कर आना, उल्टी, पसीना व चक्कर आने जैसी कई दिक्कतें आ सकती हैं।

एक हजार से अधिक पर सफल परीक्षण
अमरीका की नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इंफेक्शियस डिजीज (एनआइएआइडी) ने इस दवा का 1063 से अधिक गंभीर संक्रमित मरीजों पर प्रयोग किया था। उनके स्वास्थ्य में तेजी से सुधार हुआ। औसतन 11 दिन में मरीजों को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। हालांकि पूर्व में चाइनीज एकेडमी ऑफ मेडिकल साइंसेज ने भी इस दवा का परीक्षण किया था। जिसमें इसे असरकारी नहीं पाया गया था।