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आयुर्वेद में ऐसे करते हैं बीमारी की सटीक पहचान, इलाज भी 100 फीसदी कारगर

शरीर में तीन दोषों की बिगड़ने से बीमार हम बीमार होते हैं। ऐसे में स्पंदन की गति व बल के आधार पर त्रिधातु और मल की विकृति की पहचान करते हैं वह नाड़ी कहलाती है।

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आयुर्वेद

नाड़ी परीक्षण सुबह कराना चाहिए। उस समय नाडिय़ां सामान्य रूप से चलती हैं। वैद्य पुरुष के दाएं, स्त्री के बाएं हाथ की नाड़ी देखते हैं।

स्पंदन की गति
शरीर में वात, पित्त व कफ त्रिधातु पाई जाती है। इनमें दोष की वजह से व्याधि होती है। जिस स्पंदन की गति व बल के आधार पर धातु और मल की विकृति की पहचान करते हैं वह नाड़ी कहलाती है।

कब कराएं नाड़ी परीक्षण
जो रोगी नहीं है उसकी नाड़ी की जांच सुबह छह से दस बजे करते हैं। जो रोगी हैं उनका नाड़ी परीक्षण दस बजे के बाद कभी भी कर सकते हैं। अंगूठे के बगल की अंगुली वात की नाड़ी होती है जो सांप की तरह चलती है। उसके बगल मध्यमा अंगुली पित्त की नाड़ी होती है जो मेढ़क की तरह व उसके बगल की अंगुली कफ की नाड़ी हंस की भांति चलती है। नाडिय़ों की गति का भाव लघु-गुरु, साम-निराम, उष्णता है या क्षीणता की पहचान करते हैं।

खाली पेट नाड़ी का परीक्षण
सामान्यत: खाली पेट नाड़ी का परीक्षण कराना चाहिए। व्यस्तता, तनाव, दैनिक क्रिया से पहले व बाद में, भूख ज्यादा लग रही हो, नींद आ रही हो, मेहनत करने के बाद तुरंत नाड़ी परीक्षण नहीं करवाना चाहिए। नाड़ी परीक्षण से पहले मन, बुद्धि और इंद्रिय समान अवस्था में रहना चाहिए। शांत अवस्था में ही नाड़ी परीक्षण कराना चाहिए।