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वर्किंग वुमंस के बच्चों में मोटापा होने की आशंका ज्यादा-शोध

locationजयपुरPublished: Jun 27, 2020 04:49:26 pm

Submitted by:

Mohmad Imran

दुनियाभर में बच्चों की कम उम्र में ही मोटापे की समस्या ने स्वास्थ्य विशेषज्ञों को भी चिंता में डाल दिया है।

वर्किंग वुमंस के बच्चों में मोटापा होने की आशंका ज्यादा-शोध

वर्किंग वुमंस के बच्चों में मोटापा होने की आशंका ज्यादा-शोध

मैदान में बेफिक्र होकर खेलने वाले बच्चों की पीढिय़ां आज घरों के ड्रॉइंगरूम में टीवी और वीडियो गेम के साथ कैद होकर रह गए हैं। रही-सही कसर मोबाइल, इंटरनेट और केबल टीवी ने पूरी कर दी है। वहीं इस समस्या में तड़का लगाने का काम किया है वर्किंग पैरेंट्स की नई जमात ने। एक हालिया शोध के अनुसार अधिक स्क्रीन समय, कम शारीरिक गतिविधि और अनहैल्दी भोजन की आदतों के कारण हमारे बच्चों में समय से पहले ही मोटापा बढ़ रहा है। ब्रिटेन में वैज्ञानिकों की एक टीम ने अपने शोध के आधार पर इस का कारण कामकाजी महिलाओं को जिम्मेदार बताया है। इस अध्ययन में दावा किया गया है कि कामकाजी महिलाओं के बच्चों का मोटापे से ग्रस्त होने की आशंका अधिक होती है। लेकिन वैज्ञानिकों ने यह भी कहा कि बच्चों की देखभाल और उसके खानपान का ध्यान रखने की जिम्मेदारी अकेले मां पर क्यों हो? बच्चों का पालन-पोषण परिवार की साझा जिम्मेदारी है। ऐसे में हमें भी अपना नजरिया बदलने की जरुरत है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस शोध से यह स्पष्ट हो गया है कि ब्रिटेन जैसे प्रगतिशील देश में भी कामकाजी महिलाएं अपने बच्चों के प्रति जिम्मेदारियों को निभाने में जूझ रही हैं और उन्हें मदद की ज़रूरत है।
वर्किंग वुमंस के बच्चों में मोटापा होने की आशंका ज्यादा-शोध
सिंगल मदर्स के बच्चे कम एक्टिव
ब्रिटेन के यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन (University College of London) के शोध में वैज्ञानिकों ने पाया कि जिन बच्चों की मां वर्किंग वीमन हैं उनके बच्चे कम एक्टिव और खाने-पीने की खराब आदतों के शिकार होने की आशंका अधिक होती है। शोध में यह भी सामने आया कि वर्किंग मदर्स (Working Mothers) की तुलना में वर्किंग फादर के काम करने के तरीके उनके बच्चों के वजन को प्रभावित नहीं करते हैं। वहीं वे महिलाएं जो सिंगल मदर के रूप में अकेले ही अपने बच्चों को पालपोस रही हैं उनके बच्चों का वजन अधिक होने की संभावना 25 प्रतिशत अधिक होती है। इस प्रकार यह स्पष्ट हो रहा है कि वर्किंग वीमन अपने बच्चों की सेहत और खानपान संबंधी आदतों पर उतना ध्यान नहीं दे पा रहीं जितना उन्हें देना चाहिए। शोधकर्ताओं ने कहा इसका सबसे बड़ा कारण है कि ऐसी महिलाओं की मदद को बहुत कम हाथ आगे बढ़ते हैं।
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मां होना लगभग 2.5 फुल-टाइम नौकरी करने के बराबर
हाल ही हुए एक नए शोध के अनुसार होम मेकर्स के तौर पर घर का काम संभालने वाली महिलाए कामकाजी महिलाओं की तुलना में होम मेकर्स सप्ताह में 97 घंटे से भी ज्यादा समय तक काम करती हैं। अमरीका में स्कूली बच्चों और 2 हजार मांओं पर किए गए इस सर्वे में बच्चों की परवरिश, उनके पालन-पोषण, लाइफ कोच, होमवर्क करवाना और उनके साथ खेलने के अलावा घर के अन्य जरूरी कामों में महिलाओं की भूमिका का अध्ययन किया गया था। 47 फीसदी ने कहा कि वे बच्चों की देखभाल के चलते रात को सो नहीं पातीं। 62 फीसदी ने कहा कि उनके पास आराम से खाना खाने का भी समय नहीं होता। 69 फीसदी ने कहा कि वे अपने बच्चों की देखभाल के लिए और भी समय देना चाहेंगी। उनके इस साप्ताहिक 97 घंटों से भी ज्यादा की सेवा के बदलह्य शोध के अनुसार उन्हें कम से छह-आंकड़ों का वेतन बनता है। इस हिसाब से सालाना करीब 100,460 अमरीकी डॉलर (76,17,982 रुपए)। इसे शोधकर्ताओं ने पैरेंटिंग खर्च कहा। एक पूर्ण या अंशकालिक नौकरी के हिसाब से सर्वे में शामिल 70 प्रतिशत माताओं के लिए, यह राशि उनके द्वारा किए जाने वाले सभी कामों के नियमित वेतन के अतिरिक्त देनी होगी।
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7 फीसदी पुरुष ही बंटाते घर के काम में हाथ
ब्रिटेन में 8500 लोगों पर हुए एक सर्वे में सामने आया कि 7% पुरुष ही घर के कामों को मिल-बांटकर करते हैं। दरअसल, यह स्त्री-पुरुष के बीच काम के बंटवारे की नहीं बल्कि समानता की लड़ाई है। अध्ययन में पाया गया कि 93 फीसदी ब्रिटिश महिलाओं में से अधिकांश घर के काम अेकेले ही करती हैं। यहां तक कि पति-पत्नी दोनों के नौकरी करने पर भी पांच गुना संभावना है कि महिलाओं को घर के कामकाज में सप्ताह के 20 घंटे से ज्यादा खर्च करने पड़ते हैं। अध्ययन में सामने आया कि पुरुष केवल मौखिक रूप से काम में मदद करने का दिखावा करते हैं। अध्ययन के अनुसार पुरुष सप्ताह में 5 घंटे से भी कम समय घर के कामों को देते हैं। केवल 7 फीसदी पुरुष ही अपने जीवनसाथी के साथ मिलकर घर के कामों को करते हैं।
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