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फेफड़ों की बाहरी झिल्ली में पानी भरना, जानें कारण व इलाज

फेफड़ों की झिल्ली में पानी भरना आम बीमारी है।लेकिन फेफड़ों के बाहर की झिल्ली (प्लयूरा)से जुड़े रोगों का पता लगाना कठिन होता है।

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Vikas Gupta

Sep 05, 2017

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फेफड़ों की झिल्ली में पानी भरना आम बीमारी है।लेकिन फेफड़ों के बाहर की झिल्ली (प्लयूरा)से जुड़े रोगों का पता लगाना कठिन होता है।

थोरेकोस्कोपी क्या है?
फेफड़ों के विभिन्न हिस्सों में होने वाली बीमारियों के इलाज में ब्रोंकोस्कोपी तकनीक उपलब्ध होने से काफी सुविधा हो गई है। लेकिन फेफड़ों के बाहर की झिल्ली (प्लयूरा)से जुड़े रोगों का पता लगाना कठिन होता है। थोरेकोस्कोपी तकनीक में एक विशेष लचीली ट्यूब को सीने में छोटे चीरे के जरिए डालकर फेफड़ों की झिल्ली और आसपास के अंगों से जुड़े रोगों का इलाज आसान हो गया है। इसमें फेफड़ों की झिल्ली में पानी भरना आम बीमारी है। थोरेकोस्कोपी यंत्र की मदद से प्लयूरल केविटी का पूरा दृश्य कैमरे में दिखता है। थोरेकोस्कोपी से लिए गए बायोप्सी के नमूने से ऐसी बीमारी का सही पता लग जाता हैै। कई बार प्लयूरल केविटी में भरे पानी में जाले बन जाते है जिससे पानी पूर्णतया निकाला नहीं जा सकता। ऐसी स्थिति में थोरेकोस्कोपी से जाले तोड़े जाते हैं।

क्या इसमें दर्द होता है?
छाती में छोटा सुराख कर थोरेकोस्कोप प्लयूरल केविटी में जाता है। जहां से यंत्र प्रवेश करता है, वहां इंजेक्शन से सुन्न कर देते हैं। साथ ही दर्द निवारक दवा देते हैं जिससे उसे दर्द नहीं होता है।

फेफड़ों की झिल्ली में पानी भरने के क्या कारण हैं?
कई बार पानी भरने के कारण का पता नहीं लग पाता है। आमतौर पर कैंसर,लिम्फोमा और टी.बी.जैसी बीमारियों के कारण फेफड़ों की झिल्ली में पानी भरने की समस्या देखी जाती है। लेकिन हार्ट फेल्योर व किडनी से जुड़ी समस्या के कारण भी हो ऐसा सकता है।

जांच में कितना समय लगता है?
जांच से एक-दो घंटे पहले मरीज को बुलाते हैं। इस प्रक्रिया से ६ घंटे पहले तक खानपान बंद कर देते हैं। जांच में १ घंटा लगता है।

थोरेकोस्कोपी के साथ क्या खतरा है?
यह सुरक्षित तरीका है। टी.बी.व कैंसर रोगियों में पानी की अधिकता से इंफेक्शन का खतरा रहता है। रक्तस्राव भी हो सकता है। छुट्टी के बाद तक ट्यूब के स्थान पर कुछ दर्द रह सकता है।

थोरेकोस्कोपी के बाद क्या छाती में नलकी रहती है?
एक चेस्ट ट्यूब को २-३ दिन तक छेद में रख देते हैं। इस दौरान मरीज को अस्पताल में भर्ती रखते हैं। इसमें से प्लयूरा में बचा हुआ पानी निकलता रहता है। दर्द होने पर 1-2 दिन दर्द की दवा दे दी जाती है।

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