
इस उम्र में इलाज लेने से फायदा
डेंटल सर्जन्स का कहना है कि यदि बच्चा सात से आठ साल की उम्र में इलाज शुरू करवाता है तो ठीक होने की संभावना बढ़ जाती है। ऐसे मरीजों का इलाज बिना सर्जरी भी संभव होता है। बिना सर्जरी के 10मिमी आकार में बाहर निकले जबड़ों को भी ठीक किया जा सकता है। बच्चों में दांत बाहर की तरफ निकलने की भी समस्या होती है जिससे वे दूसरों की तुलना में हीनभावना महसूस करते हैं। ऐसे बच्चों का भी इलाज संभव है। इसमें पहले मरीज के मुंह से पीछे के दो-दो दांत ऊपर व नीचे दोनों तरफ से निकाले जाते हैं ताकि इलाज से आगे वाले दांतों को अंदर जाने की जगह मिल सके। दांतों को सीधा करने के लिए उनमें ब्रेसेस लगाए जाते हैं जिन्हें आम बोलचाल में वायर या तार लगाना कहते हैं। इन्हें लगाने से पहले मुंह के अंदर दांतों, मसूड़ों व हड्डी आदि का काफी विस्तार से नाप लिया जाता है। ब्रेसेस सही उम्र में लगवाने से दांत सीध में आ जाते हैं। हालांकि ऐसे इलाज में जगह बनाने के लिए कुछ दांत निकाले भी जाते हैं लेकिन उनकी जगह सीधे होने वाले दांत ले लेते हैं।
दांतों में बांधे जाते हैं कई तरह के तार
ये वायर मेटल के भी होते हैं। कई सेरामिक ब्रेसेस होते हैं जो दांतों के कलर के होने से दिखाई नहीं देते हैं। क्लीयर ब्रेसेस भी होते हैं जिसमें प्लास्टिक की शीट लगाकर ट्रीटमेंट किया जाता है। चिपकने वाले ब्रेसेस को खास तरह के गम से फिक्स किया जाता है।
डेढ़ से दो साल में पूरा हो जाता इलाज
सामान्य परिस्थिति में दांतों में तार से इलाज डेढ़ से दो साल में पूरा हो जाता है लेकिन जिन बच्चों में जन्म से कटे तालु की समस्या होती है उनका थोड़ा लंबे समय तक चलता है। एक बार दांत सीधे हो जाते हैं तो इनके फिर से टेढ़े होने की आशंका नहीं के बराबर रहती है। कुछ मरीज चाहते हैं कि उनके दांतों में तार भी बंध जाए और ये दिखाई न दे तो ऐसे में लिंग्वल ब्रेसेस दांतों के पीछे की तरफ लगाए जाते हैं। जब दांत ऊपर-नीचे असमान पॉजिशन में होते हैं तो इनकी सही से सफाई नहीं होने की समस्या भी हो जाती है लेकिन लोगों को इस बारे में पता ही नहीं चल पाता है।
Published on:
17 Jun 2020 10:59 pm
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