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स्वास्थ्य

इनके बनाए ‘ब्रेसलेट’ ने 10 हजार से ज्यादा बच्चों की जान बचाई, जानिए कैसे

रतुल नारायण का बनाया बेम्पू नाम का टेम्प्रेचर मॉनिटरिंग ब्रेसलेट भारतीय माता-पिता की सहायता कर सकता है। महज 1977 रुपए में ऑनलाइन उपलब्ध यह ब्रेसलेट नवजात को निमोनिया से बचाने में एक कारगर उपकरण है।

Sep 11, 2018 / 01:14 pm

सुनील शर्मा

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छोटे बच्चों खासकर नवजातों की देखभाल में बहुत सी बातों का ध्यान रखना पड़ता है। बच्चों में फैट(वसा) उनके लिए एक बेहद जरूरी तत्व है। बच्चों के शरीर में अगर फैट की कमी होगी तो उनका शारीरिक तापमान गिर सकता है। वे हाइपोथर्मिक हो सकते हैं। साथ ही उन्हें सांस लेने में भी तकलीफ हो सकती है। भारत जैसे विकासशील देश में बुनियादी चिकित्सकीय सुविधाएं ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी हाशिए पर हैं।
रिमोट एरिया के अस्पतालों में प्रसव पूर्व जन्मे बच्चों और सामान्य से कम वजन के बच्चों के लिए इन्क्यूबेटर जैसे महंगे उपकरण खरीद पाना आसान नहीं है। स्थिति हाथ से निकलने तक ज्यादातर माता-पिता को पता नहीं होता कि उनके बच्चे खतरे में हैं। ऐसे में रतुल नारायण का बनाया बेम्पू नाम का टेम्प्रेचर मॉनिटरिंग ब्रेसलेट भारतीय माता-पिता की सहायता कर सकता है। महज 1977 रुपए में ऑनलाइन उपलब्ध यह ब्रेसलेट नवजात को निमोनिया से बचाने में एक कारगर उपकरण है। इसे बच्चों की कलाई पर बांधा जाता है। अगर बच्चे को ज्यादा सर्दी लग रही है तो इसका रंग बदलकर संतरी हो जाता है। साथ ही यह अलार्म के जरिए भी माता-पिता को सचेत करता है।
ब्रेसलेट के रंग से या अलार्म सुनकर मां बच्चे को गोद में लेकर या सीने से लगाकर गरमाहट दे सकती है। इस छोटे से उपकरण की अहमियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसने 25 से ज्यादा देशों में 10 हजार से ज्यादा बच्चों की जान बचाई है। यहां महत्वपूर्ण बात है कि इन बच्चों में ज्यादातर भारत के हैं। बेम्पू ब्रेसलेट के सीईओ रतुल नारायण कहते हैं कि निमोनिया से होने वाले बच्चों की मौतों को रोकना ही उनका पहला लक्ष्य था, जिसमें वे सफल भी रहे।
टेम्प्रेचर मॉनिटरिंग ब्रेसलेट की खासियत ने इसे २०१७ की टाइम मैगजीन में प्रकाशित साल के २५ सर्वश्रेष्ठ आविष्कारों में जगह दिलाई। ग्रामीण क्षेत्र के नवजातों के लिए वरदान वजन में हाथघड़ी से भी हल्का ब्रेसलेट बच्चों की कलाई पर फिट हो जाता है।
भारत को दी वरीयता
मूल रूप से दक्षिण भारतीय रतुल एक बायोमैकेनिकल इंजीनियर हैं। उन्होंने नामी अमरीकी कंपनियों की जॉब को ठुकरा कर भारत में नवजात बच्चों की मृत्युदर को कम करने के लिए यह ब्रेसलेट बनाया। आज अकेले भारत में 2,000 से ज्यादा बच्चे बेम्पू का इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्होंने एक साल तक भारत के ग्रामीण और शहरी क्षेत्र के अस्पतालों के साथ काम किया है।

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