
कर्नाटक में एचआइवी प्रसार दर राष्ट्रीय औसत से ज्यादा
जब कोई व्यक्ति एचआइवी संक्रमित होता है तो धीरे-धीरे उसमें वायरल लोड बढ़ता है यानी बीमारी गंभीर होती है। ऐसे व्यक्ति को कुछ वर्षों तक सही इलाज नहीं मिले तो उन्हें एड्स हो जाता है। एड्स ऐसी बीमारी है जिसमें एक साथ कई तरह की समस्याएं होती हैं। इससे मरीज की जान चली जाती है।
इलाज की सुविधा अच्छी
एचआइवी-एड्स का इलाज पहले से बहुत अच्छा हुआ है। अगर बीमारी की पहचान जल्दी हो जाए तो दवा लेने के साथ व्यक्ति सामान्य जीवन व्यतीत कर सकता है। न तो उसकी जान जाती है और न ही उससे दूसरों में संक्रमण फैलता है।
एआरटी सेंटर से लें इलाज
देशभर में एआरटी सेंटर्स बनाए गए हैं जहां एचआइवी के मरीजों का नि:शुल्क इलाज होता है। अपने देश में भी वही इलाज मिलता है जो विश्व के विकसित देशों में मिलता है।
नियमित दवा लेने से वायरल लोड जीरो होता
हाल ही कई रिसर्च में पाया गया कि जो एचआइवी मरीज नियमित रूप से अपनी दवा लेते हैं उनका वायरल लोड धीरे-धीरे घटकर जीरो हो जाता है। ऐसे व्यक्ति से दूसरों में एचआइवी संक्रमण होने की आशंका भी शून्य हो जाती है। वह भी सामान्य लोगों की तरह में अपना जीवन व्यतीत कर सकते हैं लेकिन दवा बीच में छोडऩे से इसकी गंभीरता बढ़ जाती है।
हाइ रिस्क लोग इसकी मॉनीटरिंग करवाते रहें
असुरक्षित संबंध बनाने वाले, सुई से नशा करने वाले, जिन्हें असुरक्षित खून चढ़ा हो, संक्रमित सुई चुभी हो या इस तरह के मेडिकल सेंटर्स में काम करने वाले लोग, गर्भवती महिलाएं आदि एचआइवी के लिए हाइ रिस्क श्रेणी में आते हैं। ऐसे लोगों की मॉनीटरिंग होनी चाहिए। उनकी जांच होनी चाहिए क्योंकि एचआइवी में शुरुआती लक्षण नहीं दिखते हैं।
डरें नहीं, केयर करें
अक्सर देखा जाता है कि एचआइवी मरीजों की पहचान के बाद उनका परिवार साथ नहीं देता है। यह सही बात नहीं है। एक बार इलाज शुरू हो जाता है तो डरने वाली कोई बात नहीं है। ऐसे मरीजों की केयर करें। मरीज की दवा बीच में बंद न होने दें। धीरे-धीरे मरीज दवाओं के साथ सामान्य लोगों जैसा हो सकता है।
जब हो किसी को संदेह तो...
जब किसी को लगता है कि उसे कोई संक्रमित सुई लगी है जिससे एचआइवी की आशंका है या फिर असुरक्षित यौन संबंध बना है तो सबसे पहले उन्हें अपनी जांच करवानी चाहिए।
पहली जांच दो सप्ताह होने पर करवाएं। यह एक तरह का एंटीजन टेस्ट होता है। यह नेगेटिव या पॉजिटिव आता है तो एक माह बाद एंटीवायरल लोड टेस्ट किया जाता है।
दूसरी-तीसरी जांच में इसकी पुष्टि होती है। अगर पहले की जांचों में टेस्ट नेगेटिव आया है तो दूसरे और तीसरे महीने में भी वायरल लोड की जांच की जाती है। अगर दूसरे और तीसरे माह में भी वायरल लोड नेगेटिव आता है तो बीमारी नहीं है। अगर यह पॉजिटिव आता है तो तत्काल एआरटी सेंटर जाएं और डॉक्टरी परामर्श लें।
Updated on:
25 Sept 2023 06:53 pm
Published on:
25 Sept 2023 06:51 pm
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