
लेप्रोस्कोपिक सर्जरी के लिए रोगी को सबसे पहले ओटी में शिफ्ट किया जाता है। इसके बाद एनेस्थेसिया (बेहोशी) दी जाती है। इसके बाद सबसे पहले रोगी के पेट में पोर्ट से छेद कर कार्बनडाईऑक्साइड गैस भरी जाती है जिससे रोगी का पेट फूल जाता है। इसके बाद तीन और छेद की मदद से एक से एचडी कैमरा और दो छेद से सर्जरी उपकरण डाले जाते हैं। कंसोल की मदद से चिकित्सक पेट के भीतर उपकरणों की हर मूवमेंट पर नजर रखते हैं और उस हिस्से को काट-काट कर निकालते हैं जो बीमारी का कारण होता है।
इसलिए मानी जाती सुरक्षित
लेप्रोस्कोपी सर्जरी से गॉल ब्लैडर (पित्त की थैली), पेल्विस, अपर और लोवर जीआई ट्रैक्ट, थोरेक्स सर्जरी, अपेंडिक्स, हर्निया के साथ बड़ी और छोटी आंत का सफल ऑपरेशन संभव है। लेप्रोस्कोप से ऑपरेशन में मरीज की रिकवरी फास्ट होती है। इस सर्जरी को तय करने से पहले रोगी की स्थिति, उसका स्वास्थ्य और बीमारी की गंभीरता के आधार पर तय किया जाता है। ये सर्जरी ओपेन सर्जरी की तुलना में बहुुत सरल है और मरीज को लंबे समय तक बैड रेस्ट नहीं करना पड़ता है।
एक से डेढ़ एमएम का लगता है चीरा
इस सर्जरी में रोगी के पेट पर एक से डेढ़ सेमी. का गोल छोटा चीरा (इंसिजन) लगाया जाता है। ऑपरेशन के बाद इसे बंद करने के लिए दो से तीन टांके लगाते हैं। जबकि ओपेन सर्जरी में पांच से पंद्रह इंच का चीरा लगाया जाता है। ओपेन सर्जरी में रोगी को 25 से 30 दिन तक आराम करना पड़ता है। टांके में संक्रमण होने का खतरा होने के साथ उसके किसी कारण टूटने की वजह से भी परेशानी होने लगती है।
Published on:
30 Aug 2020 11:33 pm
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