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दशामाता व्रत 2019 पूजा मुहूर्त समय व्रत कथा, जानिए पूजा के लिए शुभ समय

locationभोपालPublished: Mar 25, 2019 11:19:33 am

Submitted by:

Faiz

दशामाता व्रत 2019 पूजा मुहूर्त समय व्रत कथा, जानिए पूजा के लिए शुभ समय

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दशामाता व्रत 2019 पूजा मुहूर्त समय व्रत कथा, जानिए पूजा के लिए शुभ समय

हर व्यक्ति का समय एक बार बदलता जरूर है। अगर अनेक उपाय व तमाम मेहनत के बाद भी समय नहीं बदले तो मनुष्य को दशामाता का व्रत, पूजा आदि करना चाहिए। चैत्रमाह के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को ये किया जाता है। पीपल के वृक्ष पर होने वाली इस पूजा को अगर समय का ध्यान रखकर बेहतर मुहूर्त में किया जाए तो एक वर्ष के अंदर समय में बदलाव आता है। ये बात रतलाम के प्रसिद्ध ज्योतिषी वीरेंद्र रावल ने कही। वे भक्तों को रंग पंचमी के दिन दशामाता की कथा, पूजा मुहूर्त, शुभ समय आदि के बारे में बता रहे थे।
ज्योतिषी रावल ने कहा कि दशामाता का व्रत चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की दशमी को किया जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति का बुरा समय दूर हो जाता है तथा अच्छा समय आ जाता है। इस व्रत को 2019 में शनिवार (30 मार्च) को मनाया जाएगा। माना जाता है जब व्यक्ति की दशा ठीक होता है तो उसके सभी कार्य सफल होने लगते हैं, लेकिन जब व्यक्ति की दशा खराब होती है उसके कार्य में बाधा आने लगती है। इसलिए चैत्र मास की दशमी को दशामाता का व्रत किया जाता है जिससे व्यक्ति के जीवन में चल रहा बुरा समय दूर हो सके।
पहले जाने इस व्रत की पूजा विधि

अगर आप पहली बार पूजा कर रहे है तो घर के किसी कोने में साफ सफाई करके एक दीवार पर स्वास्तिक बनाएं। इसके बाद स्वास्तिक के पास 10 बिंदियां बनाएं। पूजा में रोली, मौली , सुपारी, चावल, दीप, नैवेद्य, धुप आदि शामिल करें। इसके अलावा सफेद धागा लें और उसमे गांठ बना लें। फिर उसे हल्दी में रंग लें। इस धागे को दशामाता की बेल कहा जाता है। दशामाता की पूजा के बाद इस धागे को गले में धारण करें। इस धागे को पूरे साल ना उतारें। अगर आपको पूजा करते हुए एक वर्ष या उससे अधिक समय हो गया है तो जब दशामाता की पूजा करें तो पुराने धागे को उतारकर नया धागे धारण करें। दशमाता की पूजा विधि विधान से करने पर मनुष्य का बुरा समय दूर हो सकता है तथा दशमाता की कृपा सदैव बनी रहती है। इसके साथ ही घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
ये रहती है पूजा सामग्री

पूजा सामग्री में रोली, मौली , सुपारी, चावल, दीप, नैवेद्य, धुप आदि का इंतजाम कर लें। साथ में सफेद धागा लें और उसमे गांठ बना लें। फिर उसे हल्दी में रंग लें। इस धागे को दशमाता की बेल कहते हैं। पूर्व के वर्ष की बेल को पीपल में बांधा जात है व महिलाएं नई बेल लेकर अपने घर में आती है। इसकी पूजा के साथ में ही करके इसे गले में धारण करें। इसे फिर पुरे साल कभी न उतारें। अगले साल जब फिर पूजा करें तो इसे उतारकर नए धागे की पूजा करके धारण करें। दशमाता की पूजा विधिपूर्वक करने से दशमाता की कृपा सदैव बनी रहती है। घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
पूजा के लिए शुभ मुहूर्त

शुभ चौघडिय़ा सुबह 7.57 से 9.29 तक।
लाभ चौघडि़या दिन में 2.07 से 3.29 बजे तक।
अभिजीत मुहूर्त 12.09 से 12.59 तक

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