
chandra moon in kundli
खगोल विज्ञान में चंद्रमा को भले ही
पृथ्वी का उपग्रह माना गया है परंतु ज्योतिष शास्त्र में पृथ्वी के निकट होने के
कारण इसे नवग्रहों में शामिल किया गया है क्योंकि अन्य ग्रहों के सामान ही इसका
प्रभाव मनुष्य पर पड़ता है। सूर्य देव की रश्मियों से दमकने वाले चंद्र सोलह कलाओं
से युक्त हैं। समस्त देवता, यक्ष, मनुष्य, भूत, पशु-पक्षी, वृक्ष आदि के प्राणों का
आप्यायन करने वाले चंद्रदेव मन के कारक हैं।
जिस तरह समुद्र के खारी जल में इनके
कारण ज्वार आता है उसी प्रकार मनुष्य के शरीर में मौजूद रक्त की क्षारीय प्रकृति के
कारण पूर्णिमा और अमावस्या तिथि पर चंद्रदेव अपना प्रभाव छोड़ते हैं। यही कारण है
कि इन तिथियों पर अक्सर मानसिक रोगियों में पागलपन, अवसाद, उन्माद, दुराचार, चोरी
आदि करने की घटनाएं नजर आती हैं।
चंद्र देव की प्रकृति
उत्तर-पश्चिम
स्वामी, जल एवं स्त्री तत्व वाले चंद्र देवमाता-पिता, शारीरिक बल, राज्यानुग्रह,
संपत्ति से संबंध रखते हैं और कुंडली के चौथे भाव के कारक हैं। चंद्र देव की अपनी
राशि कर्क है तथा वृष राशि में उच्च के जबकि वृश्चिक राशि में नीच के प्रभाव रखते
हैं। चंद्र देव की मित्रता एवं परस्पर आकर्षण लगभग सभी ग्रहों से है। इनका कोई भी
शत्रु नहीं है। कुंडली के छठे, आठवें और बारहवें भाव में चंद्र देव की उपस्थिति
जातक के लिए कष्टकारी होती है। वहीं मेष, वृश्चिक और कुंभ राशियों में चंद्र देव
जीवन में नकारात्मक प्रभाव देने वाले होते हैं।
चंद्र देव की उपासना
स्वास्थ्य, सौंदर्य, प्रेम, सम्मान और पारिवारिक सुख व शांति के लिए चंद्र देव
की उपासना की जाती है। जीवन में मानसिक कष्ट के निवारण, कार्य सिद्धि और व्यापार
में लाभ के लिए कम से कम दस और अधिक से अधिक 54 सोमवार को चंद्र देव का व्रत रखते
हुए नमक रहित भोजन करना चाहिए। इसके लिए सफेद वस्त्र धारण करके चंद्र देव को रात्रि
में जल अर्पित कर दही, दूध, चीनी और घी से निर्मित भोजन का प्रसाद लगाकर, उसे ग्रहण
करना चाहिए। चंद्र देव की उपासना के लिए प्रत्येक सोमवार को भगवान शिव की स्तुति
करनी चाहिए।
- ज्योतिर्विद प्रमोद अग्रवाल
Published on:
18 Oct 2015 06:27 pm
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