
फसल अवशेष जलाकर खेतों व पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वालों के लिए नजीर हैं मानसिंह गुर्जर
शकील नियाजी
खेतों में किसान की जान बसती है लेकिन लागत अधिक और उपज कम होने से परेशान होकर अधिक से अधिक उपज के लिए तरह तरह के गैर वैज्ञानिक तरीकों को अपना लेता है जिससे उसे ही भुगतना पड़ता है। खेतों में फसल कटने के बाद बचे अवशेष का निस्तारण भी किसान की परेशानी का सबब है। आर्थिक संकट झेल रहे किसान इससे निजात पाने के लिए खेतों में ही इसे जलाने को मजबूर होता है। हालांकि, इसका खामियाजा भी तमाम बार वह भुगतता है। प्रदूषण तो बढ़ता ही है तमाम बार आग बेकाबू होकर फसल को भी नष्ट कर देती है। लेकिन इन सबके बीच एक ऐसे भी किसान हैं जो बीते दस वर्षाें से नजीर बने हुए हैं। यह किसान फसल अवशेष जलाते नहीं बल्कि उसका सदुपयोग खेतों को उर्वरा बनाने में करते हैं। सिंचाई की लागत भी इनके फार्मूले से आधी हो जाती है।
हम बात कर रहे हैं होसंगाबाद जिले के बनखेड़ी गरधा गांव के किसान मान सिंह गुर्जर की। एक तरफ जहां मूंग की खेती के लिए किसान नरवाई जलाकर खेतों को साफ करने में लगा हुआ है, वहीं दूसरी ओर मान सिंह गुर्जर अपने खेतों में फसल अवशेषों पर रोटावेटर चलाकर उसकी प्रासेसिंग में व्यस्त हैं।
जैविक खेती को अपनाने वाले किसान मान सिंह गुर्जर इस साल अपनी बारह एकड़ खेत में गेंहू बोए थे। फसल काटने के बाद उसके अवशेष का वह सदुपयोग करने में लगे हुए हैं। गुर्जर अपने खेतों में गेंहू की डंठलों को रोटावेटर चलवाकर मिट्टी में मिलवा रहे हैं।
‘पत्रिका’ से बातचीत में मान सिंह गुर्जर ने बताया कि वह खेतों में फसल अवशेष पर ही रोटावेटर चलवा देते हैं। खेत में फैले अवशेष को मिट्टी में मिलवाते हैं। थोड़ी पानी देने के बाद वह खेत में ही सड़कर जैविक खाद बन जाता है। वह बताते हैं कि पिछले दस साल से वह यही प्रक्र्रिया अपना रहे हैं। नरवाई में आग लगाकर जलाने से खेतों को भी नुकसान होता है। खेतों की उर्वरता धीरे धीरे समाप्त हो जाती है। जबकि फसल अवशेष को खेतों में ही मिला देने से खेतों को प्राकृतिक रूप से उर्वरक मिल जाता है। यही नहीं उपजाउ मिट्टी की परत को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचता है।
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सिंचाई के लिए पचास प्रतिशत पानी कम, केंचुआ भी खूब मिलते
किसान मान सिंह गुर्जर बताते हैं कि मिट्टी में फसल अवशेष मिलाने के बाद जब पानी दिया जाता है तो उस मिट्टी में केंचुओं को भी आश्रय मिल जाता है और वह खूब तेजी से बढ़ते हैं। केंचुआ किसान के लिए कितना बड़ा मित्र है, यह किसानी करने वाला भलीभांति जानता है।
गुर्जर बताते हैं कि पर्यावरण संरक्षण में कई प्रकार से यह विधि बेहद उपयोगी है। अव्वल यह कि इस विधि के अपनाने से खेतों की नमी बरकरार रहती है। फसल उपजाने के लिए सिंचाई के लिए पचास फीसदी पानी का खर्च कम हो जाता है।
वरिष्ठ कृषि विस्तार अधिकारी एसएस कौरव ने बताया कि खेतों में फसल अवशेष जलाने से खेतों में पाए जाने वाले सूक्ष्म पोषक तत्व भी जल जाते हैं। यह खेती और पर्यावरण दोनों के लिए नुकसानदायक साबित होता है।
Published on:
16 Apr 2020 09:09 am
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