
सआदत हसन मंटो की वो 5 'बदनाम' कहानियां जिसने उन्हें दिया नाम
नई दिल्ली। कहानीकार होने के साथ-साथ फिल्म और रेडिया पटकथा लेखक और पत्रकार रहे सआदत हसन मंटो ( Saadat Hasan Manto ) का आज ही के दिन जन्म हुआ था। 11 मई सन 1912 में जन्में मंटो अपनी लेखनी से हर बार बार समाज को चुनौती देते थे। कहानियों में अश्लीलता के आरोप की वजह से मंटो को 6 बार अदालत जाना पड़ा था, जिसमें से तीन बार पाकिस्तान ( Pakistan )बनने से पहले और तीन बार बनने के बाद, लेकिन एक भी बार उनपर मामला साबित नहीं हो पाया। उनकी कुछ कहानियों का दूसरी भाषाओं में अनुवाद किया गया है। वे अपनी लेखनी की वजह से अक्सर चर्चा में रहते थे लेकिन लोगों ने उन्हें साहित्यकार मानने से इंकार कर दिया था। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 70 साल में मंटो की किताबों की मांग लगातार रही है। धीरे-धीरे वे घर-घर में जाना जाने वाला नाम बन गया। आइए नज़र डालते हैं मंटो की कुछ 'बदनाम कहानियों' पर।
1- टोबा टेक सिंह सआदत हसन मंटो द्वारा लिखी गई और 1955 में प्रकाशित हुई एक प्रसिद्ध लघु कथा है। यह भारत के विभाजन के समय लाहौर के एक पागलखाने के पागलों पर आधारित है और समीक्षकों ने इस कथा को पिछले 50 सालों से सराहते हुए भारत-पाकिस्तान संबंधों पर एक "शक्तिशाली तंज" बताया है।
2- 20वीं सदी के लेखक कमलेश्वर प्रसाद सक्सेना ने मंटो को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ कहानीकार बताया था।
3- इसी तरह 'ठंडा ग़ोश्त', 'काली सलवार' और 'बू' नाम की कहानियों पर पाबंदिया लगाई गई। "भीड़, रेप और लूट की आंधी में कपड़े की तरह जिस्म भी फाड़े जाते हैं हवस और वहश का ऐसा नज़ारा जिसे देखने के बाद खुद दरिंदे का सनकी हो जाने की कहानी है 'ठंडा गोश्त'।"
4- मंटो को चाहने वालों की मानें तो वह भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद अपने होश खो बैठे थे। बंटवारे के बाद उन्होंने 'खोल दो' लिखी थी।
5- मंटो पर हर बार अश्लील होने का इल्ज़ाम लगता रहा। पाबंदियां लगाई जाती हैं। उन्हें बतौर कहानीकार इन्हीं पाबंदियों का फायदा हुआ।
Updated on:
11 May 2019 09:21 am
Published on:
11 May 2019 07:00 am
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