
story of sudha murthy
नई दिल्ली। इंफ़ोसिस (Infosys) का नाम सुनते ही एक एक शख्स का नाम सबके दिमाग में आता है। ये नाम है एन आर नारायणमूर्ति (NR Narayana Murthy) । नारायणमूर्ति (NR Narayana Murthy) ही वो शख्स हैं जिसके वजह से आज इन्फोसिस (Infosys) को भारत का ही नहीं बल्कि दुनिया की टाॅप IT कंपनियों में गिना जाता है। लेकिन ये बहुत कम लोग जानते हैं कि इस कंपनी को किसके पैसों से बनाया गया है। दरअसल, नारायण की पत्नी सुधा मूर्ति टाटा इंडस्ट्रीज में काम करती थी।
नारायणमूर्ति ने उनसे 10,000 रुपये उधार लेकर इस कंपनी को शुरू किया था। जो अब पूरी दुनिया में झंडे गाड़ रही है। इन्फोसिस के इन्फोसिस फाउंडेशन (Infosys Foundation) की अध्यक्षा सुधा मूर्ति (Sudha Murty) और नारायणमूर्ति की पत्नी का आज जन्मदिन है। सुधा मूर्ति (Sudha Murty) ऐसी शख्सियत हैं जो जिंदगी को सादगी के साथ जीती है। उनके बारे में बहुत सी कहानियां है। वह आज लाखों महिलाओं के लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं।
आज उनके जन्मदिन के अवसर पर हम आपको उनसे जुड़ी एक कहानी सुनाते हैं। दरअसल, एक बार सुधा मूर्ति (Sudha Murty) गुलबर्गा से बेंगलुरु जा रही थी। वे अपने सीट पर बैठी ही थी कि टिकट चेकर की नजर उनकी सीट के नीचे दुबकी एक बच्ची पर पड़ी।
बच्ची की उम्र लगभग 10-11 साल थी। TC ने बच्ची से टिकट दिखाने के लिए कहा। टिकट का नाम सुनते ही वे रोने लगी। इसके बाद टिकट चेकर ने उसे डांटते हुए गाड़ी से नीचे उतरने को कहा। तभी वहीं मौजूद सुधा ने TC से कहा ‘इस लड़की का बेंगलुरु तक का टिकट बना दो इसके पैसे मैं दे देती हूं।’
सुधा मूर्ति (Sudha Murty) ने जब लड़की से उसका नाम पूछा तो उसने बताया चित्रा । लेकिन इसके आगे उसे कुछ नहीं पता था। इसके बाद सुधा उसे बेंगलुरु ले गई और जान-पहचान की एक स्वयंसेवी संस्था को सौंप दिया। चित्रा वहां रहकर पढ़ाई करने लगी। सुधा अक्सप हालचाल पता करती और उसकी मदद भी करती रहती।
फिर धीरे-धीरे समय बितता गया। अब इस घटना के लगभग 20 साल बाद सुधा (Sudha Murty) किसी कार्यक्रम में सिरकत के लिए अमेरिका के सेन फ्रांसिस्को गई। वहां वे एक रेस्ट्रोरेंट में कुछ खाने गई। खाना खाने के के बाद वह जब अपना बिल देने के लिए रिसेप्शन पर आई तो पता चला कि उनके बिल का भुगतान सामने बैठे एक दंपती ने कर दिया है। इसके बाद सुधा उनके पास गई और पूछा, ‘आप लोगों ने मेरा बिल क्यों भर दिया?’ तो उन्होंने जवाब दिया ‘मैम, गुलबर्गा से बैंगलुरु तक के टिकट के सामने यह कुछ भी नहीं है।’ सुधा ने ध्यान से देखा तो वे चित्रा थी।
Published on:
19 Aug 2020 08:12 pm
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